‘ गुट-निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है ‘ I आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैंI अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करेंI
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गुटनिरपेक्ष आंदोलन अप्रासंगिक-अमेरिका
वॉशिंगटन (भाषा) | भाषा| पुनः संशोधित शनिवार, 19 सितम्बर 2009 (16:53 IST) संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के एक शीर्ष राजनयिक ने शीत युद्ध के समय हुए गठजोड़ों और गुटनिरपेक्ष आंदोलन को अप्रासंगिक करार दिया और कहा कि ये मंच अपने सदस्य देशों के हितों को नही साधते।
सुजन राइस ने कहा कि इस तरह के गुट अब अप्रासंगिक हो गए हैं। ये गुट अपने सदस्य देशों के राष्ट्रीय हितों को नहीं साध पाते। उन्होंने कहा कि हम ऐसा देखते हैं और ऐसा सोचते हैं कि अब इन देशों को जरूरत है कि वे इन पारंपरिक गुटों से बाहर आएँ और 21वीं सदी के अपने सुरक्षा हितों को देखें।
एक सवाल के जवाब में सुसान ने कहा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन की गुटबाजी के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा में कुछ बिखराव आया और कभी यह गुटबाजी पश्चिमी और विकसित देशों के कारण थी।
राइस का यह बयान संयुक्त राष्ट्र में चीन की भूमिका से जुड़े सवाल के सिलसिले में आया। उन्होंने कहा कि चीन उन देशों में है, जिसके साथ हम सुरक्षा परिषद में मिल कर काम करते हैं।
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"जब शीत युद्ध अपने चरम पर था तो दोनों दोनों महाशक्तियां दुनिया के देशों को अपने-अपने गुट में शामिल करने में लगी हुई थीं । तब ऐसे में इन दोनों महा शक्तियों के प्रभाव से अलग एक नये गुट का जन्म हुआ जो गुट-निरपेक्ष आंदोलन बना ।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद शीतयुद्ध लगभग समाप्त हो गया है और अमेरिका ही इकलौती महाशक्ति बचा है । ऐसे में सवाल उठता है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन जोकि शीतयुद्ध के परिणामस्वरूप बना था, उसकी अब क्या प्रासंगिकता है ? तो यहां यह कहा जा सकता है कि गुट-निरपेक्ष आंदोलन आज के समय में भी पूरी तरह अप्रासंगिक नहीं हुआ है ।
(1) गुट-निरपेक्ष आंदोलन के ज्यादातर देश आज भी विकासशील व पिछड़े हुए हैं । इस कारण विकसित देशों द्वारा उनका शोषण संभव है । ऐसे में जरूरी है कि वह गुट-निरपेक्ष आंदोलन के अन्य देशों से जुड़े रहे और विकसित देशों पर दबाव बनाए ।
(2) विकासशील देशों के सामने अभी भी बहुत सारी समस्याएं हैं, गुट-निरपेक्ष आंदोलन में एक-दूसरे के साथ आकर अपनी-अपनी समस्याओं को सुलझा सकते हैं ।
(3) भारत जैसे कई विकासशील देश आज भी अपनी विदेश नीति के रूप में गुट-निरपेक्ष आंदोलन की नीति का अनुसरण करते हैं ।
(4) विकासशील देशों को अपने हितों की रक्षा के लिए एक मंच पर बने रहना बहुत जरूरी है ।
(5) गुट-निरपेक्ष आंदोलन अगर अप्रासंगिक हो गया होता तो उसके आज 120 सदस्य देश नही होते ।
इस प्रकार हम यह मान सकते हैं कि गुट-निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता आज भी कम नहीं हुई है ।
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