(ग) 'तोड़ती पत्थर कविता की मूल उद्देश्य क्या रहा होगा?
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मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा। वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी।
तोड़ती पत्थर' शीर्षक कविता में पत्थर तोड़ने वाली गरीब मजदूरनी की मार्मिक एवं दारुण स्थिति का यथार्थ वर्णन प्रस्तुत किया है। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह भी कवि को एक क्षण के लिए देखती है
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