गेटियार की समस्या नामक लेख किस दार्शनिक के द्वारा जर्नल में प्रकाशित करवाया गया था
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Answer: आन्री बर्गसाँ पेरिस के 'रूये लामार्तिन' नामक स्थान पर, १८ अक्टूबर १८५९ ई. को पैदा हुए थे। नौ वर्ष की उम्र में, अपने घर के समीप, 'लिकी कांदाँर्चेत' नामक विद्यालय में पढ़ने गया। १८ वर्ष की उम्र तक वहाँ उसने विज्ञान, गणित और साहित्य का अध्ययन कर 'बचलर' की उपाधि प्राप्त की। उसकी प्रतिभा के लक्षण यहीं से प्रकट होने लगे थे। विद्यालय छोड़ने के वर्ष उसने गणित प्रतियोगिता में भाग लेकर, किसी समस्या का इतना अच्छा हल दिया था कि उसके अध्यापकों ने उसे 'एनल्स द मैथमेतिक' में प्रकाशित किया।
उक्त विद्यालय छोड़ने पर, वह उच्चस्तरीय अध्ययन के लिए, 'इकोले नार्मेल सुपीरियोर' में भर्ती हुआ। साहित्य और विज्ञान में समान रुचि के कारण, वहाँ उसने दर्शन विषय लिया। इससे उसे फ्रांस के तीन जाने माने दार्शनिकों से शिक्षा प्राप्त करने का सुयोग मिला। ये दर्शन के इतिहास में प्रसिद्ध आदर्शवादी रैवायज़ाँ, बोत्रों तथा जूल्स लैकेलिए थे। इनके संपर्क से उसे पदार्थवाद के विरुद्ध आदर्शवादी अथवा प्रत्ययवादी तर्कों का ज्ञान हुआ। इसी समय उसने यूनानी दार्शनिकों का अध्ययन किया, जिससे उसे पता चला कि दर्शन का द्वंद्व प्राचीन काल से चला आ रहा है। हेराक्लाइटस (५३५-४७५ ई. पू.) तथा ज़ीनो (जन्म, ४८९ ई. पू.) ने उसका ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। हैराक्लाइटस गति को संसार का मौलिक नियम मानता था। ज़ीनो वही स्थान स्थिरता को देता है। हेराक्लाहटस की नदी निरंतर बहती रहती है; उसमें कोई दो बार पैर नहीं डाल सकता। ज़ीनो के लिए उसके गुरु पार्मेंनाइडीज़ की बताई हुई सत्ता एक सी रहती है; न कुछ बदलता है, न पैदा होता है, न नष्ट होता है। यहीं से हेनरी बर्गसाँ का माथा ठनका और उसने दर्शन तथा विज्ञान का गहन अध्ययन जारी रखने का संकल्प किया।
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