गौतम बुद्ध की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?
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गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ई. में पूर्व कुशीनारा में हुई थी। उस समय उनकी उम्र 80 वर्ष थी। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे 'महापरिनिर्वाण' कहते हैं।
मृत्यु पर अलग-अलग मत
बौद्ध ग्रंथ 'महा-परिनिर्वाण सूक्त' में पाली भाषा में उल्लेखित है, 'उस वर्ष बारिश से पहले बुद्ध राजगृह में थे। वहां से वे भिक्षु संघ के साथ यात्राएं करते वैशाली पहुंचे। यहां पास के बेल्ग्राम में उन्होंने वर्षावास किया। यहां वे बीमार हो गये। स्वस्थ होने पर वे फिर अम्बग्राम, भंडग्राम, जम्बूग्राम, भोगनगर आदि की यात्रा करते पावा नामक ग्राम में पहुंचे।
वे यहां चुंद कम्मारपुत्र नामक एक लुहार के आमों के वन में ठहरे। उसने खाने में उन्हें मीठे चावल, रोटी व मद्दव दिया। बुद्ध ने मीठे चावल व रोटी तो औरों को दिलवा दिए पर मद्दव इसलिए किसी को नहीं दिया क्योंकि उन्होंने समझ लिया था, यह कोई अन्य पचा नहीं सकेगा। स्वयं उन्होंने भी जरा सा खाया। शेष जमीन में गड़वा दिया। इसको खाते ही वे बीमार हो गये थे। और उनकी मृत्यु हो गई।
न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका (मार्को पीडिया भाग) में उल्लेखित है कि संभव है कि एक ग्रामीण व्यक्ति के घर कुछ खाने के कारण उनके पेट में दर्द शुरु हो गया। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुशीमारा चल दिये। रास्ते में उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा, 'आनंद इस संधारी के चार तह करके बिठाओ। मैं थक गया हूं, लेटूंगा। आनंद मेरे लिए कुकुत्था नदी से पानी ले आओ।
बुद्ध ने फिर उस कुकुत्था नदी में खूब स्नान किया। उसके बाद वहीं रेत पर चीर बिछा कर लेट गए। कुछ देर आराम करने के बाद वह अब चलने लगे रास्ते में उन्होंने हिरण्यवती नदी पार की। अंत में कुशीमारा पहुंचे। यहां उनका कहना था कि, 'मेरा जन्म दो शाल वृक्षों के मध्य हुआ था, अत: अन्त भी दो शाल वृक्षों के बीच में ही होगा। अब मेरा अंतिम समय आ गया है।'
आनंद को बहुत दु:ख हुआ। वे रोने लगे। बुद्ध को पता लगा तो उन्होंने उन्हें बुलवाया और कहा, 'मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि जो चीज उत्पन्न हुई है, वह मरती है। निर्वाण अनिवार्य और स्वाभाविक है। अत: रोते क्यों हो? बुद्ध ने आनंद से कहा कि मेरे मरने के बाद मुझे गुरु मानकर मत चलना।
बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राहुल भी भिक्षु हो गये थे। पर बुद्ध ने उन्हें कभी कोई महत्व प्राप्त नहीं होने दिया। बुद्ध की पत्नी यशोधरा अंत तक उनकी शिष्या नहीं बनीं।