ग. दिल्ली आने पर फादर लेखक के लिए क्या करते थे?
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वे अपने दोस्तों से जब भी मौका मिलता जरूर मिलते। दिल्ली आने पर वे लेखक से दो मिनट के लिए ही सही मिलते जरूर थे। कोई भी सन्यासी इस तरह से रिश्तों के बंधन में नहीं पड़ता है। इसलिए यह कहा गया है कि फादर बुल्के ने सन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है।
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