(ग) दधीचि कर्ण आदि द्वारा किया गया त्याग आज के संदर्भ में रक्तदान, अंगदान के समान ही है।अपने विचार तर्क सहित तिखिए।
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रक्तदान करने से शरीर में किसी तरह की कमजोरी नहीं आती है। जबकि इससे शरीर और स्वस्थ बनता है। डोनेट करने के बाद 24 घंटे में वापस शरीर में उतना ही ब्लड बन जाता है।
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कवि ने दधीचि, कर्ण आदि जैसे महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर संपूर्ण संसार के मनुष्य को मनुष्यता, त्याग और बलिदान का संदेश दिया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दधीचि ऋषि ने अपनी जीवन-रक्षक कवच-कुंडल को अपने शरीर से अलग करके दान में दे दिया था। रंतिदेव नामक दानी राजा ने भूख से व्याकुल ब्राह्मण को अपने हिस्से का भोजन दे दिया था। राजा शिवि ने कबूतर के प्राणों की रक्षा हेतु अपने शरीर का मांस काटकर दे दिया। ये कथाएँ हमें परोपकार का संदेश देती हैं। ऐसे महान लोगों के त्याग के कारण ही मनुष्य जाति का कल्याण संभव हो सकता है। कवि के अनुसार मनुष्य को इस नश्वर शरीर के लिए मोह का त्याग कर देना चाहिए।
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