History, asked by rj442998, 5 months ago

गांधीजी अंग्रेजों के विरोध के लिए नमक को ही क्यों चुना गांधी जी की दांडी यात्रा की चर्चा कीजिए​

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Answered by shivnathpandey099
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Answer:

कानून तोड़ने के लिए नमक ही क्यों चुना गया?

ऐसा नहीं था कि 1930 में नमक ही सबसे बड़ी समस्या थी, जिसके लिए इतना बड़ा आंदोलन करना पड़ा. उस वक्त कई ऐसे टैक्स थे जो भारतीयों पर थोपे गए थे. मसलन लैंड रेवेन्यू. लेकिन महात्मा गांधी ने नमक को चुना क्योंकि उनका मानना था कि नमक पर हर भारतीय का हक है.

हर भारतीय काम करते हुए पसीना बहा रहा है और उसे ही नमक नहीं मिल पा रहा है. गांधी की नजर में यह अन्याय था. ब्रिटिश सरकार ने नमक पर भारी भरकम टैक्स लगाया था. नमक बनाने पर भी सरकार का एकाधिकार था. बिना टैक्स दिए किसी को भी नमक नहीं मिल सकता था. जबकि महात्मा गांधी का मानना था कि नमक प्राकृतिक चीज है. मुफ्त है. देश के लोग अपने पसीने में नमक बहा रहे हैं तो नमक पर उनका पहला अधिकार है.

महात्मा गांधी का यह मार्च सत्य के लिए था. उनके इरादे साफ थे. 'अगर आप हमें मारेंगे तो हम पलटकर वार नहीं करेंगे. लेकिन हम आपके नियम-कानून भी नहीं मानेंगे.

महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 में अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था. दांडी मार्च (Dandi March) जिसे नमक मार्च, दांडी सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है 1930 में महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध किया आंदोलन था

Answered by Shailymishra81
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सूरत। 6 अप्रैल, 1930 यानी की आज ही के दिन महात्मा गांधी ने दांडी में मुट्ठी भर नमक उठाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बिगुल बजाया था। गांधी जी ने मार्च 1930 में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में 12 मार्च से 6 अप्रैल तक नमक सत्याग्रह चलाया था। इसके लिए उन्होंने अपने सहयोगियों संग अहमदाबाद से दांडी तक की लगभग 400 किमी की यात्रा की थी। गांधीजी ने ‘नमक सत्याग्रह’ इसलिए शुरू किया था, ताकि लोग स्वयं नमक उत्पन्न कर सकें। समुद्र की ओर इस यात्रा में हजारों की संख्या में भारतीयों ने भाग लिया था। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भी भेजा था।





हालांकि भारतीय यह इतिहास बहुत अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन ये बात शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि गांधीजी ने नमक सत्याग्रह के लिए दांडी गांव को ही क्यों चुना था। अचरज की बात यह भी है कि न तो उस समय नमक यहां नमक बनाया जाता था और न ही आज। बल्कि उस समय यहां पर नमक का निर्माण कुदरती तरीके से होता था और इसी नमक का उपयोग यहां के बाशिंदे किया करते थे।





...फिर भी महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के लिए इसी स्थल को क्यों चुना?





मटवाड के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी गोंसाईभाई शीवाभाई पटेल के अनुसार दांडी में उस समय प्राकृतिक रूप से ही नमक निर्मित होता था। समुद्र का झाग लहरों से किनारे पर जमा हो जाता था और सूखकर नमक बन जाता था। यानी की नमक निर्माण की यह प्रक्रिया प्राकृतिक थी, आज भी है। गांव के लोग इसी नमक का उपयोग किया करते थे।





दरअसल गांधीजी जब दक्षिण आफ्रिका में थे, तब वहां उनके साथ आट गांव के फकीरभाई भीखाभाई भी थे। कुछ समय बाद फकीरभाई भारत वापस आकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए थे। इस समय उनके साथ स्वराज्य की लड़ाई में सूरत का पाटीदार आश्रम भी पूरी तरह सक्रिय था। इस आश्रम में कांठा जिले के कई युवक रहा करते थे।





इसीलिए दक्षिण आफ्रीका से वापसी और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के बाद जब गांधीजी ने नमक सत्याग्रह का विचार बनाया तो इन लोगों ने उन्हें दांडी गांव का नाम सुझाया था। उस समय सूरत प्रार्थना संघ के किशोरभाई देसाई ने गांधीजी को विचार दिया था कि हमें नमक सत्याग्रह के लिए ऐसे स्थल का चयन करना चाहिए, जो न तो बहुत दूर हो और न ही बहुत पास। इसीलिए दांडी गांव को चयन किया गया।
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