गांधी जी के अनुसार पाप का अन्न कौन खाता है? जो मेहनत नहीं करता। जो मेहनत करता है।
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उनका कहना था कि जो श्रम नहीं करता है, वह पाप करता है और पाप का अन्न खाता है। ऋषि-मुनियों ने कहा है बिना श्रम किए जो भोजन करता है वह वस्तुतः चोर है। महात्मा गाँधी का समस्त जीवन-दर्शन श्रम-सापेक्ष था। उनका समस्त अर्थशास्त्र यही बताता था कि प्रत्येक उपभोक्ता को उत्पादन कर्ता होना चाहिए।
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