गांधीजी के धर्म की अवधारणा का सूक्ष्म आंकलन क्यों आवश्यक है?
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गांधीवाद महात्मा गांधी के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे। यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है जो गांधीजी ने जीवन पर्यंत जिया था।
Explanation:
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परमात्मा का कोई धर्म नहीं है।
मैं उसे धार्मिक कहता हूं जो दूसरों का दर्द समझता है।
क्या धर्म इतनी सरल वस्तु है जैसे कपड़े, जिसे एक मनुष्य बदल सकता है अपनी इच्छा अनुसार और इच्छा अनुसार पहन सकता है? धर्म ऐसा है जिसके लिए लोग पूरी पूरी उम्र जीते हैं।
मेरे धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है. सत्य मेरा भगवान है। अहिंसा उसे साकार करने का साधन है।
धर्म जीवन की तुलना में अधिक है। याद करें कि उसका अपना धर्म ही परम सत्य है हर मनुष्य के लिए भले ही दार्शनिक मान्यताओं के माप में किसी नीचे स्तर पर हो।
जो ये कहते है की धर्म का राजनीत से कोई लेना देना नहीं है, ये नहीं जानते है की धर्म क्या है।
सभी सिद्धांतों को सभी धर्मों के इस तार्किक युग में तर्क की अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा और सार्वभौमिक स्वीकृति प्राप्त करनी होगी।
किसी का धर्म अंततः उसके और उसके बनाने वाले के बीच का मामला है और किसी का नहीं।
एक धर्म जो व्यावहारिक मामलो पर ध्यान नहीं देता और उन्हें हल करने में कोई मदद नहीं करता धर्म नहीं है।