गांधीजी की विचारधारा
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गांधीजी ने सबको सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पे चलने का सन्देश दिया उनका ऐसा मानना था कि व्यक्ति के विचारो में परिवर्तन ला कर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है, गांधीजी ने अपने विचारो के माध्यम से राजनितिक, दार्शनिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन किये, वे एक समाज सुधारक भी थे उन्होंने निची जाति के लोगो के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एवं छुआ-छूत का विरोध किया, निम्न्न जाति के लोगो को सर्वप्रथम उन्होंने ही हरिजन कह कर बुलाना प्रारंभ किया जिसका शाब्दिक अर्थ “ईश्वर के बच्चे” है।
गांधीजी की ऐसी विचारधारा थी कि राज्य को धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, उनके अनुसार ईश्वर तो सत्य एवं प्रेम का रूप हैं, उनका भी यही मानना था की सबका मालिक एक है बस सब ईश्वर की अलग अलग व्याख्या करते हैं, गांधीजी का स्वयं का जीवन मानव और समाज का वो नैतिक लेख है जिसके गर्भ दृष्टि से उनकी अहिंसा एवं सत्य की विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ।
गांधीजी द्वारा स्वरचित कुछ पंक्तियाँ मैं यहाँ बताना चाहूंगी जिसके माध्यम से उनकी विचारधारा को काफी हद तक समझा जा सकता है।
मैं तुम्हे एक जंतर देता हूँ जब भी तुम्हे संदेह हो या तुम्हारा अहम् तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी आजमाओ, जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए उपयोगी होगा क्या ? उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा? यानि क्या उससे उन करोड़ो लोगो को स्वराज मिल सकेगा जिनके पेट भूखे आत्मा अतृप्त है? तब तुम देखोगे तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम् समाप्त होता जा रहा है।
यदि हम वर्तमान में गांधीजी की विचारधारा के प्रभाव की बात करे तो वो आज भी जीवित है अभी हाल ही में गांधीजी के जन्मदिन की 150 वी वर्षगाँठ पर फिल्म निर्देशक राजू कुमार हिरानी ने एक लघु फिल्म का निर्देशन किया जिसके माध्यम से गांधीजी की विचारधारा को लोगो के सामने पेश किया, ये इस बात का घोतक है कि गांधीजी आज भी हमारे समक्ष परोक्ष रूप से उपस्थित हैं एक विचारधारा के रूप में।
गांधीजी पूंजीवादी विचारधारा के विरोधी रहे, वो शक्ति के विकेन्द्रीकरण में विश्वास रखते थे इसीलिए उन्होंने ग्राम पंचायतों को शक्तिशाली बनाने पे जोर दिया, उन्होंने हमेशा से राम राज्य की कल्पना की जहाँ हिंसा नहीं अहिंसा का बोलबाला हो, गांधीजी ने कहा था कि, “मैं उस राम में आस्था नहीं रखता जो रामायण में हैं मैं तो उस राम में आस्था रखता हूँ जो मेरे मन में हैं” उनके अनुसार भारत की सभी समस्याओं का समाधान अहिंसा में छिपा है।