गांधी जी ने जीवमात्र के एक्य के लिए आत्मशुद्धि को प्रधानता क्यों दी है स्पष्ट कीजिए
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महात्मा गांधी ने सेहत के लिए भी उपवास के फायदे महसूस किए थे, लेकिन उनकी सबसे बड़ी खोज थी इस आध्यात्मिक साधना का राजनीतिक साधन के रूप में प्रयोग इन दिनों उपवास सुर्खियों में है. हाल में कांग्रेस ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ उपवास का आयोजन किया था. आज यह आयोजन भाजपा ने किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा सांसद उपवास पर हैं. कांग्रेस का उपवास केंद्र सरकार को दलित विरोधी बताते हुए था तो भाजपा कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों पर संसद न चलने देने का आरोप लगाते हुए उपवास कर रही है.
एक बार किसी ने उपवास को लेकर तंज की भाषा में गांधीजी को एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें लिखा गया था, ‘आजकल तो अनशन की हवा चल पड़ी है और उसका दोष आप ही को दिया जा रहा है.’ इसका जवाब देते हुए ‘हरिजनबन्धु’ के 21 अप्रैल, 1946 के अंक में गांधीजी ने लिखा- ‘...अनशन में एक-दूसरे की नकल करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है. जिसके हृदय में बल नहीं वह उपवास हरगिज न करे और फल की आशा से भी वह उपवास न करे. जो फल की आशा रखकर उपवास करता है वह हारता है और यदि वह हारता नज़र नहीं भी आ रहा हो, तब भी वह उपवास के आनन्द को खो बैठता है. हास्यास्पद अनशन होते रहें और महामारी की तरह अनशन का रोग फैल जाए तो भी जहां उपवास करना धर्म है वहां उसका त्याग नहीं किया जा सकता.’