गाँधी जी ने 'कुर्सी ' किसके लिए मंगवाई? *
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30 जनवरी 1948 को शाम पाँच बजकर पंद्रह मिनट पर जब गाँधी लगभग भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ़ बढ़ रहे थे, तो उनके स्टाफ़ के एक सदस्य गुरबचन सिंह ने अपनी घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा था, "बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई."
गाँधी ने चलते-चलते ही हंसते हुए जवाब दिया था, "जो लोग देर करते हैं उन्हें सज़ा मिलती है." दो मिनट बाद ही नथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियाँ महात्मा गाँधी के शरीर में उतार दी थीं.
मोहनदास करमचंद गाँधी की मौत की ख़बर मिलते ही उस ज़माने में 'अंजाम' अख़बार के लिए काम करने वाले पत्रकार कुलदीप नैयर मोटर साइकिल से बिरला हाउस पहुंचे थे.
Image copyright KEYSTONE/GETTY IMAGES महात्मा गांधी
Image caption 30 जून 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मार दी थी
गांधी का पार्थिव शरीर
कुलदीप नैयर याद करते हैं, "जब मैं वहाँ पहुंचा तो वहाँ कोई सिक्योरिटी नहीं थी. बिरला हाउस का गेट हमेशा की तरह खुला हुआ था. उस समय मैंने जवाहरलाल नेहरू को देखा. सरदार पटेल को देखा. मौलाना आज़ाद कुर्सी पर बैठे हुए थे ग़मगीन. माउंटबेटन मेरे सामने ही आए. उन्होंने आते ही गाँधी के पार्थिव शरीर को सैल्यूट किया. माउंटबेटन को देखते ही एक व्यक्ति चिल्लाया- 'गाँधी को एक मुसलमान ने मारा है'. माउंटबेटन ने ग़ुस्से में जवाब दिया- 'यू फ़ूल, डोन्ट यू नो, इट वॉज़ ए हिंदू!' मैं पीछे चला गया और मैंने महसूस किया कि इतिहास यहीं पर फूट रहा है. मैंने ये भी महसूस किया कि आज हमारे सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है."
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कुलदीप नैयर कहते हैं, "बापू हमारे ग़मों का प्रतिनिधित्व करते थे, हमारी ख़ुशियों का और हमारी आकांक्षाओं का भी. हमें ये ज़रूर लगा कि हमारे ग़म ने हमें इकट्ठा कर दिया है. इतने में मैंने देखा कि नेहरू छलांग लगाकर दीवार पर चढ़ गए और उन्होंने घोषणा की कि गांधी अब इस दुनिया में नहीं हैं."
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hlo Mr.keshav.......,.