गांधीजी से चरखा चलवाने की बात क्यों कही गई है?
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कुछ समय पहले खादी और ग्रामोद्योग आयोग की डायरी-कैलेंडर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर ने विवाद खड़ा कर दिया था. इसके बाद खबर आई कि आयोग ने नामी ब्रांड फैब इंडिया को नोटिस भेज दिया है. उसका कहना था कि फैब इंडिया रेडीमेड कॉटन के कपड़ों को खादी बताकर बेच रहा है जो नियमों का उल्लंघन है. यह खबर भी खूब सुर्खियों में रही.
एक बार महात्मा गांधी ने चरखा चलानेवालों के लिए दो उदाहरण सामने रखे थे. पहला उदाहरण उन्होंने रखा था मुग़ल बादशाह औरंगजेब का जो अपनी टोपियां खुद ही बनाता था. और दूसरा उदाहरण था कबीर का जिन्होंने गांधी के मुताबिक इस कला को अमर बना दिया था. 21 जुलाई, 1920 को यंग इंडिया में छपे अपने इस लेख में गांधी ने लिखा कि ‘जब यूरोप शैतान के चंगुल में नहीं फंसा था, उन दिनों वहां की रानियां भी सूत कातती थीं और इसे एक अच्छा काम मानती थीं.’ दरअसल गांधी ने यह बात मदन मोहन मालवीय के प्रयासों के संदर्भ में कही थी जो भारत के राजा-महाराजा और रानी-महारानियों को भी चरखे पर बिठाकर सूत कतवाना चाहते थे.
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