History, asked by Kristin4378, 9 months ago

गांधार मूर्तिकला की कोई एक प्रमुख विशेषता बताइए।

Answers

Answered by surwaseanjali79
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Explanation:

वैदिक तथा बाद के संस्कृत साहित्य में मिलता है। सामान्यतः गान्धार शैली की मूर्तियों का समय पहली शती ईस्वी से चौथी शती ईस्वी के मध्य का है तथा इस शैली की श्रेष्ठतम रचनाएँ ५० ई० से १५० ई० के मध्य की मानी जा सकती हैं। गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय थी, परन्तु कला शैली यूनानी और रोमन थी। इसलिए गांधार कला को ग्रीको-रोमन, ग्रीको बुद्धिस्ट या हिन्दू-यूनानी कला भी कहा जाता है। इसके प्रमुख केन्द्र जलालाबाद, हड्डा, बामियान, स्वात घाटी और पेशावर थे। इस कला में पहली बार बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं।[1]

इनके निर्माण में सफेद और काले रंग के पत्थर का व्यवहार किया गया। गांधार कला को महायान धर्म के विकास से प्रोत्साहन मिला। इसकी मूर्तियों में मांसपेशियाँ स्पष्ट झलकती हैं और आकर्षक वस्त्रों की सलवटें साफ दिखाई देती हैं। इस शैली के शिल्पियों द्वारा वास्तविकता पर कम ध्यान देते हुए बाह्य सौन्दर्य को मूर्तरूप देने का प्रयास किया गया। इसकी मूर्तियों में भगवान बुद्ध यूनानी देवता अपोलो के समान प्रतीत होते हैं। इस शैली में उच्चकोटि की नक्काशी का प्रयोग करते हुए प्रेम, करुणा, वात्सल्य आदि विभिन्न भावनाओं एवं अलंकारिता का सुन्दर सम्मिश्रण प्रस्तुत किया गया है। इस शैली में आभूषण का प्रदर्शन अधिक किया गया है। इसमें सिर के बाल पीछे की ओर मोड़ कर एक जूड़ा बना दिया गया है जिससे मूर्तियाँ भव्य एवं सजीव लगती है। कनिष्क के काल में गांधार कला का विकास बड़ी तेजी से हुआ। भरहुत एवं सांचीमें कनिष्क द्वारा निर्मित स्तूप गांधार कला के उदाहरण हैं।[2]

चित्र दीर्घा

सन्दर्भ

Answered by saurabhgraveiens
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गांधार स्कूल ग्रीको-रोमन मानदंडों पर आधारित था जिसमें विदेशी तकनीकों और विदेशी भावना का समावेश था।

Explanation:  

ग्रे बलुआ पत्थर (ब्लू-ग्रे मीका विद्वान एक प्रकार की शीस्ट होता हैं ) का इस्तेमाल गांधार स्कूल ऑफ आर्ट में किया जाता है। गंधारन की मूर्तियां एक ‘मानव-देवता’ के चित्रण और लहराती बाल, सैंडल और व्यापक ड्रैपर में ग्रीक प्रभाव दिखाती हैं। माना जाता है कि गंधारन मूर्तिकला में बुद्ध को एक 'मानव-देवता' के रूप में चित्रित किया गया है, जो कि ग्रीक पौराणिक कथाओं से प्रेरित है | गंधारन कला के कुछ उदाहरण बुद्ध और यूनानी देवता, हरक्यूलिस दोनों को दर्शाते हैं।आमतौर पर ग्रीक कला में देखे जाने वाले प्लास्टर का उपयोग मठवासी और पंथ की इमारतों की सजावट के लिए गांधारन कलाकृति में व्यापक रूप से किया जाता था।

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