गंधार शैली की विशेषताएँ बताइए।
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इनके निर्माण में सफेद और काले रंग के पत्थर का व्यवहार किया गया। गांधार कला को महायान धर्म के विकास से प्रोत्साहन मिला। इसकी मूर्तियों में मांसपेशियाँ स्पष्ट झलकती हैं और आकर्षक वस्त्रों की सलवटें साफ दिखाई देती हैं। इस शैली के शिल्पियों द्वारा वास्तविकता पर कम ध्यान देते हुए बाह्य सौन्दर्य को मूर्तरूप देने का प्रयास किया गया। इसकी मूर्तियों में भगवान बुद्ध यूनानी देवता अपोलोके समान प्रतीत होते हैं। इस शैली में उच्चकोटि की नक्काशी का प्रयोग करते हुए प्रेम, करुणा, वात्सल्य आदि विभिन्न भावनाओं एवं अलंकारिता का सुन्दर सम्मिश्रण प्रस्तुत किया गया है। इस शैली में आभूषण का प्रदर्शन अधिक किया गया है। इसमें सिर के बाल पीछे की ओर मोड़ कर एक जूड़ा बना दिया गया है जिससे मूर्तियाँ भव्य एवं सजीव लगती है। कनिष्क के काल में गांधार कला का विकास बड़ी तेजी से हुआ। भरहुत एवं सांचीमें कनिष्क द्वारा निर्मित स्तूप गांधार कला के उदाहरण हैं।[2]
गान्धार शैली की विशेषताएँ कुछ इस प्रकार
है:-
• यह गान्धार प्रदेश में मूर्ति बनाने की एक शैली ।
नोट :- गान्धार : आधुनिक पेशावर , तक्षशिला
और वहां के आसपास इलाके ( पाकिस्तान
का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र )
• गान्धार शैली की समय : पहली शती ईस्वी
से चौथी शती ईस्वी का मध्य ।
• यह मूर्ति बनाने की प्राचीनतम कला है।
• कहां जाता है कि , गान्धार शैली भारतीय
विषय वस्तु को अपनाते थे परन्तु , उनका
शैली विदेशी था ।
• गान्धार शैली के अन्य नाम :-
1) ग्रीको-रोमन कला
2) ग्रीको बुद्धिस्ट कला
3) हिन्दू-यूनानी कला
• इस शैली की नक्काशी बहुत खूब और
उच्चकोटि का था ।
• यह कला ' बौद्ध धर्म ' से प्रभावित है ।
• भूरे और काले रंग के पत्थर , इस कला के
अन्तर्गत प्रयोग में लाए जाते थे ।
• इस कला में वस्त्रों के सिलवटें का अच्छा
चित्र खींचा गया है ।
• साथ ही अपने मूर्तियों में , माँसपेशियों को
नायाब ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
• इस शैली के अन्तर्गत भगवान बुद्ध की
प्रतिमा बनाई गई है । यह प्रतिमा इतना नायाब
ढ़ंग से बनाया गया है कि यह ' अपोलो ' जो
यूनानियों के देवता है , उसके भांति प्रतीत
होती है ।
• इस शैली में भगवान बुद्ध ,देवी रोमा की
मूर्ति, कुबेर, इंद्र, ब्रह्मा, सूर्य देवताओं की
मूर्तियां उल्लेखनीय हैं ।