Political Science, asked by jayramchandrathakur, 6 months ago

गांधी द्वारा दी गई स्वराज की अवधारणा की विवेचना कीजिए क्या आप समझते हैं कि यह स्वशासन से भिन्न है अपने उत्तर के पक्ष में उत्तर दीजिए ​

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Answered by ankitajha813
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Answered by Anonymous
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Explanation:

स्वराज का शाब्दिक अर्थ है ‘स्वशासन या "अपना राज्य। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्म-निर्णय तथा स्वाधीनता की माँग पर बल देता था। स्वराज शब्द का पहला प्रयोग स्वामी दयानंद सरस्वती ने किया था। प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) ने स्वाधीनता को दूरगामी लक्ष्य मानते हुए ‘स्वशासन’ के स्थान पर ‘अच्छी सरकार’ (ब्रिटिश सरकार) के लक्ष्य को वरीयता दी। तत्पश्चात् उग्रवादी काल में यह शब्द लोकप्रिय हुआ, जब बाल गंगाधर तिलक ने यह उद्घोषणा की कि ‘‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’’ गाँधी ने सर्वप्रथम 1920 में कहा कि ‘‘मेरा स्वराज भारत के लिए संसदीय शासन की मांग है, जो वयस्क मताधिकार पर आधारित होगा। गाँधी का मत था स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो।’’ वस्तुत: गांधीजी का स्वराज का विचार ब्रिटेन के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, ब्यूरोक्रैटिक, कानूनी, सैनिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार करने का आन्दोलन था।  

यद्यपि गांधीजी का स्वराज का सपना पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सका फिर भी उनके द्वारा स्थापित अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस दिशा में काफी प्रयास किये।

स्वराज पर गाँधी के विचार

गाँधी के 'स्वराज' की अवधारणा अत्यन्त व्यापक है। स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्तर पर विदेशी शासन से स्वाधीनता प्राप्त करना नहीं है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक व नैतिक स्वाधीनता का विचार भी निहित है। यह राष्ट्र निर्माण में परस्पर सहयोग व मेल-मिलाप पर बल देता है। शासन के स्तर पर यह ‘सच्चे लोकतंत्र का पर्याय’ है। गाँधी का स्वराज ‘निर्धन का स्वराज’ है, जो दीन-दुखियों के उद्धार के लिए प्रेरित करता है। यह आत्म-सयंम, ग्राम-राज्य व सत्ता के विकेन्द्रीकरण पर बल देता है। गाँधी ने ‘सर्वोदय’ अर्थात् सर्व-कल्याण का समर्थन किया। अहिसांत्मक समाजःगाँधी की दृष्टि में आदर्श समाज-व्यवस्था वही हो सकती है, जो पूर्णतः अहिंसात्मक हो। जहाँ हिंसा का विचार ही लुप्त हो जाएगा, वहाँ ‘दण्ड’ या ‘बल-प्रयोग’ की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी अर्थात् आदर्श समाज में राजनीतिक शक्ति या राज्य की कोई आवश्यकता नहीं होगी। गाँधी हिंसा तथा शोषण पर आधारित वर्तमान राजनीतिक ढाँचे को समाप्त करके, उसके स्थान पर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे, जो व्यक्ति की सहमति पर आधारित हो तथा जिसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीकों से जन-कल्याण में योगदान देना हो।

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