गाँधीवाद आधुनिक सभ्यता को कैसे प्रभावित करता है?
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महात्मा गांधी से प्रभावित अंग्रेजों की ना तो गांधी के जीवित रहते कमी थी और ना ही आज. और, गांधी-कथा का वैचित्र्य देखिए कि गांधी के असर में आये अंग्रेजों को, ब्रिटिश सत्ता से लड़ाई के उन दुश्वार दिनों में भी लगता था कि गांधी को समझना मुश्किल है और यही स्थिति आज भी है, जब भारत आजाद होकर ब्रिटिश-साम्राज्य के अधीन रहे ‘राष्ट्रकुल’ के देशों में प्रेम-भाव से शामिल है. मिसाल के लिए आज की ब्रिटिश संसद के नेता-प्रतिपक्ष जेरेमी कोर्बिन या बीते कल में ब्रिटिश-सत्ता का हिस्सा रहे साहित्यकार-पत्रकार जार्ज ऑरवेल का नाम लिया जा सकता है. #लेखक
By R.K. Lakshman
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गांधी: प्रश्न भी, समाधान भी !
जेरेमी कोर्बिन ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नये नेता चुने गये हैं. इस साल सितंबर के पूरे महीने हिन्दुस्तानी अखबारों के विदेश से संबंधित पन्नों पर कोरिबन की चुनावी जीत की खूब चर्चा हुई. तकरीबन तीन दशक से ब्रिटेन के हाऊस ऑफ कॉमन्स में सांसद की हैसियत से मौजूद जेरेमी कोर्बिन की जीवन-कथा के अनेक प्रसंग अनायास ही गांधी की याद दिलाते हैं. गांधी के बारे में मशहूर है कि वे भरसक रेलगाड़ी के साधारण डिब्बे में चलना पसंद करते थे और यही हाल कोर्बिन का है. वे साइकिल से चलते हैं, कार नहीं रखी और चुनाव-प्रचार की घड़ी में एक तस्वीर ऐसी भी छपी जिसमें वे ब्रिटेन की भीड़ भरी लेटनाइट बस में जन-साधारण के बीच इस इंतजार में खड़े नजर आये कि कोई सीट खाली हो तो छियासठ साल के अपने बुढ़ापे की थकान को उसपर संयत कर सकें. गांधी ने बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए ब्रिटेन जाने को आतुर अपने बड़े बेटे हरीलाल को रोककर पारिवारिक जीवन में कटुता पैदा की. उन्हें लोगों से कहना पड़ा कि ‘हरीलाल की परेशानी से पार पाना उनके लिए आजादी की लड़ाई लड़ने से ज्यादा कठिन है’. बच्चे की पढ़ाई को लेकर कोर्बिन ने भी अपने पारिवारिक जीवन में कड़वाहट घोली है. पत्नी से उनकी अनबन इस बात को लेकर हुई कि पढ़ाई के लिए बच्चे का नाम किस स्कूल में लिखवायें. पत्नी एक महंगे स्कूल में बच्चे का नाम लिखवाना चाहती थीं जबकि कोर्बिन सरकारी स्कूल में नाम लिखवाने के हक में थे. समाजवाद के अपने सिद्धांत से निजी जीवन में ना डिगने का व्रत लिए बैठे जेरेमी कोर्बिन का इस बात पर पत्नी से मतभेद इतना बढ़ा कि नतीजा तलाक के रुप में सामने आया.
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महात्मा गांधी से प्रभावित अंग्रेजों की ना तो गांधी के जीवित रहते कमी थी और ना ही आज. और, गांधी-कथा का वैचित्र्य देखिए कि गांधी के असर में आये अंग्रेजों को, ब्रिटिश सत्ता से लड़ाई के उन दुश्वार दिनों में भी लगता था कि गांधी को समझना मुश्किल है और यही स्थिति आज भी है, जब भारत आजाद होकर ब्रिटिश-साम्राज्य के अधीन रहे ‘राष्ट्रकुल’ के देशों में प्रेम-भाव से शामिल है. मिसाल के लिए आज की ब्रिटिश संसद के नेता-प्रतिपक्ष जेरेमी कोर्बिन या बीते कल में ब्रिटिश-सत्ता का हिस्सा रहे साहित्यकार-पत्रकार जार्ज ऑरवेल का नाम लिया जा सकता है. #लेखक
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गांधी: प्रश्न भी, समाधान भी !
जेरेमी कोर्बिन ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नये नेता चुने गये हैं. इस साल सितंबर के पूरे महीने हिन्दुस्तानी अखबारों के विदेश से संबंधित पन्नों पर कोरिबन की चुनावी जीत की खूब चर्चा हुई. तकरीबन तीन दशक से ब्रिटेन के हाऊस ऑफ कॉमन्स में सांसद की हैसियत से मौजूद जेरेमी कोर्बिन की जीवन-कथा के अनेक प्रसंग अनायास ही गांधी की याद दिलाते हैं. गांधी के बारे में मशहूर है कि वे भरसक रेलगाड़ी के साधारण डिब्बे में चलना पसंद करते थे और यही हाल कोर्बिन का है. वे साइकिल से चलते हैं, कार नहीं रखी और चुनाव-प्रचार की घड़ी में एक तस्वीर ऐसी भी छपी जिसमें वे ब्रिटेन की भीड़ भरी लेटनाइट बस में जन-साधारण के बीच इस इंतजार में खड़े नजर आये कि कोई सीट खाली हो तो छियासठ साल के अपने बुढ़ापे की थकान को उसपर संयत कर सकें. गांधी ने बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए ब्रिटेन जाने को आतुर अपने बड़े बेटे हरीलाल को रोककर पारिवारिक जीवन में कटुता पैदा की. उन्हें लोगों से कहना पड़ा कि ‘हरीलाल की परेशानी से पार पाना उनके लिए आजादी की लड़ाई लड़ने से ज्यादा कठिन है’. बच्चे की पढ़ाई को लेकर कोर्बिन ने भी अपने पारिवारिक जीवन में कड़वाहट घोली है. पत्नी से उनकी अनबन इस बात को लेकर हुई कि पढ़ाई के लिए बच्चे का नाम किस स्कूल में लिखवायें. पत्नी एक महंगे स्कूल में बच्चे का नाम लिखवाना चाहती थीं जबकि कोर्बिन सरकारी स्कूल में नाम लिखवाने के हक में थे. समाजवाद के अपने सिद्धांत से निजी जीवन में ना डिगने का व्रत लिए बैठे जेरेमी कोर्बिन का इस बात पर पत्नी से मतभेद इतना बढ़ा कि नतीजा तलाक के रुप में सामने आया.