ग) धरती माँ किसका पाठ पढ़ाती है ? *
1. खेती करने का
2. उन्नति करने का
3. रचनात्मक कार्य करने का
4. सह-अस्तित्व और एकता का
Answers
Answer:
Luster Silk has a shiny, shimmery appearance. Wool doesn't have a shine.
Insulating Properties Silk is not as good as wool in retaining warmth. Wool has good insulating properties
Answer:
हरी -हरी वह घास उगाती है
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती है
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंग
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करती
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापन
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती है
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सब
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सबनदियाँ, पोखर, झरने और समंदर
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सबनदियाँ, पोखर, झरने और समंदरज्वालामुखी हजारों फिर भी
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सबनदियाँ, पोखर, झरने और समंदरज्वालामुखी हजारों फिर भीसोते धरती के अन्दर
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सबनदियाँ, पोखर, झरने और समंदरज्वालामुखी हजारों फिर भीसोते धरती के अन्दरजैसा सूरज तपता आसमान में
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सबनदियाँ, पोखर, झरने और समंदरज्वालामुखी हजारों फिर भीसोते धरती के अन्दरजैसा सूरज तपता आसमान मेंधरती के भीतर भी दहकता है
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सबनदियाँ, पोखर, झरने और समंदरज्वालामुखी हजारों फिर भीसोते धरती के अन्दरजैसा सूरज तपता आसमान मेंधरती के भीतर भी दहकता हैगोद में लेकिन सबको साथ सुलाती है
हरी -हरी वह घास उगाती हैफसलों को लहलहाती हैफूलों में भरती रंगपेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करतीपत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है |पानी से तर हैं सबनदियाँ, पोखर, झरने और समंदरज्वालामुखी हजारों फिर भीसोते धरती के अन्दरजैसा सूरज तपता आसमान मेंधरती के भीतर भी दहकता हैगोद में लेकिन सबको साथ सुलाती हैधरती इसी लिए माँ कहलाती है .