गाँव के जीवन और शेहेर के जीवन में क्या अंतर दिखाई देते है?
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गाँव को मुख्य रूप से पिछड़ा इलाका माना जाता है और वहीँ शहर को विकसित इलाका माना जाता है।
गाँव और शहर के जीवन में कई अंतर हैं। दोनों अपने आप में जीवन को एक अलग रूप में प्रस्तुत करते हैं। गाँव में भोजन और कपड़ा बनता है, वहीँ शहर में ज्ञान और विज्ञान विकसित होता है।उदाहरण के तौर पर, गाँवों में साफ़ पानी और हवा लोगों को मिलती है। गाँवों में प्रदुषण की मात्रा बहुत कम होती है। इसके अलावा लोगों को खाने के लिए शुद्ध भोजन मिलता है, क्योंकि वे खुद इसे अपने हाथों से उगाते हैं।डॉक्टर और अच्छी मेडिकल सेवाओं के ना होने की वजह से यहाँ के लोग बिमारी की वजह से जल्दी मर जाते हैं।शहरों में बड़े बड़े अस्पताल और अन्य सेवाएं आसानी से उपलब्ध रहती हैं। यहाँ लोग ज्यादा मेहनत करते हैं और ज्यादा ही खर्च करते हैं। to yahi antar hota hai ek gau aur sheher ke beech me
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Explanation:
भारत मुख्य रुप से एक कृषि आधारित देश है। किसान ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। वे अपने खेतों में अनाज और सब्जियां उगाने के लिए कड़ा परिश्रम करते हैं। वे फसलों की सिंचाई के लिए तालाबों और नहरों में पानी के संरक्षण करते हैं। किसानों का शहरों की भागदौड़ एवं हलचलों से दूर एवं प्रकृति के करीब होता है। वहां यदि भूमि और जाति के पूर्वाग्रहों एवं प्रचलित अंधविश्वासों पर होने वाले संघर्षों को अगर छोड़ दे तो हर जगह शांति और सौहार्द का माहौल होता है।
शहरी जीवन में व्यस्तता
दूसरी ओर, शहरों में लोग हमेशा वक्त की कमी से जूझते है, यहां हर कार्य काफी तेजी के साथ करना होता है जीवन में को उत्साह नही होता है। वहाँ हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने का जबरदस्त तनाव बना रहता है और व्यस्त शहरी जीवन की वजह से स्वास्थ्य संबंधी अन्य परेशानियां भी हो जाती हैं। शहरी निवासियों को अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों, या यहां तक कि अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए भी काफी कम समय होता है। जैसे-जैसे शहरों में रहने वाले लोगों की आवश्यकताएं एवं उनकी लागत बढ़ती जा रही हैं पैसे के पीछे भागने की प्रवृत्ति भी शहरों में लगातार बढ़ती जा रही है और यह उनके जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। धन जमा कर लेने के बावजूद शांति अभी भी शहरी निवासियों से कोसों दूर है।
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