गााँव की समस्या के बारे में जिलाधिकारी और ग्रामीण के मध्य बातचीत
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"भारत की आत्मा गाँवों में बसती है"यह कथन उतना ही सत्य है जितना जल में हाइड्रोजन और आक्सीजन का होना | यही कारण है कि भारत जैसे कृषि प्रधान व ग्राम प्रधान देश को विकसित बनने से का लक्ष्य अधूरा रह जायेगा,जब तक कि हमारे सभी गाँवो में जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो जाती है | अगर हमारे गाँव ही समस्याओ से त्रस्त है,तो सफल लोकतंत्र का दम्य भरना उचित नही होगा | यह हमारा दुर्भाग्य ही है,कि जिस सशक्त व सुद्रढ़ ग्रामीण आधार भूत ढ़ाचें की बात 'महात्मा गाँधी जी'ने भारत के विकास के लिए निर्धारित की थी,वह आज कोसो दूर है | आज आजादी के 65 साल बीत जाने के बाद भी हमारी अधिकांश ग्रामीण जनता जीवन की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है | गौर मतलब है कि भारत की 68.85 प्रतिशत आबादी आज भी गाँवो में निवास करती है,परन्तु जनसंख्या अनुपात में इन्हें भारत के आर्थिक विकास का लाभ नही मिल पा रहा है | वास्तव में भारत के स्वराज्य का इसके लिए कोई अर्थ नही रहा है | आज असंख्य गाँव राज्य की मुख्य धारा से नही जुड़ पाए है | अपने जन हितैषी तथा विकास का नारा बुलंद करने वाली सरकार ने कभी भी ग्रामीण समस्याएं चाहे वो गरीबी हो,सामाजिक समस्याएं,पेयजल,बिजली,सडक,शिक्षा कृषि समस्याएँ आदि को गम्भीर रूप से नही लिया है | प्रायः हर सरकार शहरी जनता को ही खुश करने में लगी रहती है | एक बात और ध्यान देने योग्य है कि जो गाँव शहर के जितने पास होते है उनके विकास की सम्भावनाये बनी रहती है,परन्तु दूर-दराज के पिछड़े गाँव के प्रति न तो केन्द्र सरकार,न ही राज्य प्रशासन और न ही जिला प्रशासन अपना कर्तव्य निभाता है | यही कारण है कि हमारे गाँव सभ्यता की दौड़ में पीछे छूट गये है भारतीय गाँवो की समस्याओ में भी विविधता देखने को मिलती है | बिहार-उत्तर प्रदेश की ग्रामीण समस्याएँ,पंजाब-हरियाणा के गाँव की से अलग है | वही पूर्वोत्तर राज्य के गाँवो की समस्याएँ शेष भारत से भिन्न है | समस्या चाहे अलग-अलग हो,परन्तु इनके कारण हमारी जनता का सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो रहा है | अतः इसका तत्काल समाधान आवश्यक है अन्यथा जिस 'भारत: 2020 ' के प्रति हम इतने आशान्वित है वह मृग मरीचिका ही साबित होगी |