Hindi, asked by user9345, 2 months ago

गाँव के शहरीकरण रो प्राय: विलुप्त हो चुकी हस्तकलाओं पर सचित्र जानकारी प्रस्तुत कीजिए ।​

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Answered by abhinavjha615
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Explanation:

पिछले 30 साल से हस्तशिल्प कलाओं को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित कर रहे सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में इस बार विलुप्त हो रही कलाओं का जीवंत प्रदर्शन किया जाएगा। 31वें सूरजकुंड मेले में थीम स्टेट झारखंड से लेकर बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित अन्य प्रदेशों से आग्रह किया गया है कि वो अपने प्रदेश की कम से कम दो ऐसी कलाओं के कलाकारों को भेजें जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।

मेला प्राधिकरण चाहता है कि विभिन्न प्राचीन कलाओं के भंडार कलाकार अगली पीढ़ी को सौंपकर जाएं। मगर यह तभी संभव हो सकेगा जब इनके कद्रदानों की संख्या बढ़े। इसके लिए प्राधिकरण ने इनके प्रति दर्शकों को विशेष रूप से आकर्षित करने की योजना तैयार की है। मेले में इस बार 50 स्टॉल पर विलुप्त कलाओं का जीवंत प्रदर्शन किया जाएगा। 1 से 15 फरवरी तक लगने वाले सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में पर्यटकों को झारखंड की प्राकृतिक सामग्री से बनी चित्रकलाओं से परिचित होने का मौका मिलेगा। कलाकार इस समय झारखंड की सबसे मशहूर जादू पेटिया पेंटिंग से मेला परिसर की दीवारों को सजाने में लगे हैं। झारखंड की विभिन्न जनजातियां अपने मिट्टी के घरों की बाहरी और भीतरी दीवारों को इन पेंटिंग से सजाती हैं। आदिवासी क्षेत्रों की चित्रकला टोडका, कोहबर कला को भी सूरजकुंड मेले में दर्शाया जा रहा है। ये वो कलाएं हैं जो शहरीकरण के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश में दरांती, कुल्हाड़ी बनाने का काम अब केवल घुमंतू जाति के लोग ही कर रहे हैं।

Answered by entitysmp11
5

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Explanation:

टोकरियाँ बुनने से लेकर गलीचा, लोहार, बढ़ई, बाँस की बिछिया, कुम्हार आदि कुछ भी हो सकता है, लेकिन गाँवों के शहरीकरण के कारण ये कौशल धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। ऐसे कई कुशल लोग नहीं हैं जो उन सुंदर शॉल और कालीनों को पहन सकते हैं, या बढ़ई जो नाखूनों के उपयोग के बिना अपना फर्नीचर बना सकते हैं।

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