गांवों के शहरीकरण से प्रायः विलुप्त हो चुकी हस्तकलाओं पर सचित्र जानकारी प्रस्तुत कीजिए
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गांवों के शहरीकरण के कारण जो हस्तशिल्प गायब हो गए हैं
Explanation:
हमारे देश के ग्रामीण गाँवों में मुख्य व्यवसाय कृषि हुआ करता था। यह मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किया गया था। जो महिलाएँ स्वतंत्र या अन्य पुरुष थीं, वे अपना समय कुछ हस्तशिल्प करने में व्यतीत करती थीं। टोकरियाँ बुनने से लेकर गलीचा, लोहार, बढ़ई, बाँस की बिछिया, कुम्हार आदि कुछ भी हो सकता है, लेकिन गाँवों के शहरीकरण के कारण ये कौशल धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं।
ऐसे कई कुशल लोग नहीं हैं जो उन सुंदर शॉल और कालीनों को पहन सकते हैं, या बढ़ई जो नाखूनों के उपयोग के बिना अपना फर्नीचर बना सकते हैं। ज्ञान खो रहा है क्योंकि भविष्य की पीढ़ी अब उन कौशलों का अभ्यास करने के लिए तैयार नहीं है।
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आदिवासी क्षेत्रों की चित्रकला टोडका, कोहबर कला को भी सूरजकुंड मेले में दर्शाया जा रहा है। ये वो कलाएं हैं जो शहरीकरण के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश में दरांती, कुल्हाड़ी बनाने का काम अब केवल घुमंतू जाति के लोग ही कर रहे हैं
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