Hindi, asked by shree4329, 1 year ago

गांव का विकास देश का विकास निबंध। Essay on rural development in hindi

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Answered by Stylishhh
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Essay on rural development in hindiभारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की तीन चौथाई जनसंख्या गांवों में रहती है। ग्रामीण भारत ही वास्तव में भारत की शक्ति एवं समृद्धि का निर्धारण करता है किंतु दुर्भाग्य से हमारे गांवों ने शताब्दियों की उपेक्षा सहन की है। नतीजा यह है कि हमारे गांवों की साधारण दशा संतोषजनक नहीं है। 70 वर्ष बाद भी हम ग्रामीण और शहरी जीवन के अंतर को कम करने में सफल नहीं हुए हैं। गांव की जनसंख्या के प्रति व्यक्ति आय शहरी जनसंख्या के प्रति व्यक्ति आय से कहीं कम है। लगभग 7 दशक का नियोजन किंतु फिर भी उसके फायदे वंचित मात्रा में ग्रामीण गरीब तक नहीं पहुंचे हैं। निसंदेह हमारे गांव द्वारा बहुत प्रगति की गई है किंतु इतनी नहीं जितनी कि की जा सकती थी।

पिछड़ेपन के बहुत ही महत्वपूर्ण कारणों में से एक कारण ग्रामीण जनता की व्यापक निरक्षरता है। तीन चौथाई ग्रामीण लोग अब भी निरक्षरता और अज्ञान के अंधेरे में लिपटे हुए हैं। इसके कारण उन्हें यह नहीं पता हो पाता कि उनके चारों ओर क्या हो रहा है? वे कृषि की आधुनिक तकनीकों और खेतों की उपज बढ़ाने के नवीनतम तरीकों से लाभ उठाने में अपने को अक्षम पाते हैं। औसत निर्धन ग्रामीण के अज्ञान के कारण विकास के सभी लाभ कुछ संपन्न लोगों द्वारा ही हथिया लिए जाते हैं। इस ज्ञान से ग्रस्त एवं निरक्षर जनता के शताब्दियों के अत्याचार एवं शोषण ने उनकी इस इच्छा को ही कुंठित कर दिया है कि वह आगे बढ़े और दूसरों के बराबर आएं। ग्रामीण जनता के कुछ संपन्न वर्गों ने उनका इतना शोषण किया है कि उनके लिए अच्छे जीवन के विषय में सोचना भी कठिन हो गया है। कमजोर आर्थिक दशा और उसके साथ उन्नति करने की उनकी कुंठित इच्छा यह उनकी पिछड़ेपन से मुक्ति के रास्ते में एक कठिन बाधा है। ग्रामीण निर्धन निडर होकर अपने दावों के लिए लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता। अतः उन्होंने अपने को अपने भाग्य पर छोड़ दिया है गांव में कार्य करने वाले सरकारी कर्मचारियों की उनके प्रति उपेक्षापूर्ण प्रवृत्ति ने भी स्थिति को और अधिक खराब कर दिया है। वे गांव के संपन्न और प्रभावशाली लोगों के प्रलोभनों में आ जाते हैं। गरीबों के लाभ के लिए शुरू की गई अनेक योजनाओं के अंतर्गत आवंटित धन दौलत गलत स्थान पर पहुंच जाता है। इस प्रकार गरीबों की दशा को सुधारने के लिए अरबों रुपए व्यय किए गए हैं किंतु कोई संतोषजनक प्रगति इस दिशा में नहीं हुई। सबसे मुख्य बात यह है कि जनसंख्या विस्फोट ने विकास के सभी अवसरों को प्रायः समाप्त कर दिया है। जो कुछ प्रगति होती है वह बढ़ती हुई जनसंख्या द्वारा निगल ली जाती है।

विकास की धीमी गति के लिए सरकार की दूषित नियोजन व्यवस्था भी उत्तरदाई रही है। गांवों में शैक्षिक सुविधाएं वांछित स्तर की नहीं हैं। स्वयं प्राइमरी स्कूलों की दशा सरकारी नियोजन पर दुखद टिप्पणी है। स्कूलों में साज-सामान एवं अध्यापकों की कमी है। गांव में अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है इसलिए ग्रामीण गरीब अनेक प्रकार के रोगों से त्रस्त हैं। अज्ञानता और पिछड़ेपन के कारण भी वे सफाई का महत्व नहीं समझते और बीमारियां उनको जीवनपर्यंत लगी रहती है। बहुत से गांवों में अच्छी यातायात व्यवस्था अभी भी बहुत दूर की बात है। यह सही है कि लिंक सड़कों के निर्माण के लिए बहुत प्रयास किए गए हैं किंतु आवश्यकताओं के परिप्रेक्ष्य में आवंटित की गई धनराशि बहुत कम है। ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम में भी अभी बहुत सी खामियां बनी हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर बिजली उत्पादन की स्थिति खराब होने के कारण¸ पीक मौसम के समय¸ जबकि सिंचाई की अत्यंत आवश्यकता होती है¸ हमेशा बिजली की कमी की शिकायत बनी रहती है। ग्रामीण में साख की शोचनीय सुविधाएं भी ग्रामीण ऋण ग्रस्तता के लिए उत्तरदाई रही हैं। यद्यपि इन सुविधाओं का बड़े स्तर पर कामों में विस्तार किया गया है किंतु स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है¸ विशेषकर इसलिए कुछ प्रभावशाली व्यक्ति इन सुविधाओं के एक बड़े अंश को हथिया लेते हैं। हमारे अधिकतर ग्रामीण गरीबी में ही पैदा होते हैं ऋण में ही जीवन-यापन करते हैं और ऋण में ही मर जाते हैं। सामयिक बेरोजगारी¸ लघु उद्योगों की दयनीय दशा और उनकी समुचित प्रगति के लिए प्रोत्साहन की कमी¸ विभिन्न सामाजिक रीति रिवाजों पर व्यर्थ का व्यय¸ इन सब ने ग्रामीण जनता को गरीब बनाने में योगदान दिया है।

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Answered by Anonymous
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पिछड़ेपन के बहुत ही महत्वपूर्ण कारणों में से एक कारण ग्रामीण जनता की व्यापक निरक्षरता है। तीन चौथाई ग्रामीण लोग अब भी निरक्षरता और अज्ञान के अंधेरे में लिपटे हुए हैं। इसके कारण उन्हें यह नहीं पता हो पाता कि उनके चारों ओर क्या हो रहा है? वे कृषि की आधुनिक तकनीकों और खेतों की उपज बढ़ाने के नवीनतम तरीकों से लाभ उठाने में अपने को अक्षम पाते हैं। औसत निर्धन ग्रामीण के अज्ञान के कारण विकास के सभी लाभ कुछ संपन्न लोगों द्वारा ही हथिया लिए जाते हैं। इस ज्ञान से ग्रस्त एवं निरक्षर जनता के शताब्दियों के अत्याचार एवं शोषण ने उनकी इस इच्छा को ही कुंठित कर दिया है कि वह आगे बढ़े और दूसरों के बराबर आएं। ग्रामीण जनता के कुछ संपन्न वर्गों ने उनका इतना शोषण किया है कि उनके लिए अच्छे जीवन के विषय में सोचना भी कठिन हो गया है। कमजोर आर्थिक दशा और उसके साथ उन्नति करने की उनकी कुंठित इच्छा यह उनकी पिछड़ेपन से मुक्ति के रास्ते में एक कठिन बाधा है। ग्रामीण निर्धन निडर होकर अपने दावों के लिए लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता। अतः उन्होंने अपने को अपने भाग्य पर छोड़ दिया है गांव में कार्य करने वाले सरकारी कर्मचारियों की उनके प्रति उपेक्षापूर्ण प्रवृत्ति ने भी स्थिति को और अधिक खराब कर दिया है। वे गांव के संपन्न और प्रभावशाली लोगों के प्रलोभनों में आ जाते हैं। गरीबों के लाभ के लिए शुरू की गई अनेक योजनाओं के अंतर्गत आवंटित धन दौलत गलत स्थान पर पहुंच जाता है। इस प्रकार गरीबों की दशा को सुधारने के लिए अरबों रुपए व्यय किए गए हैं किंतु कोई संतोषजनक प्रगति इस दिशा में नहीं हुई। सबसे मुख्य बात यह है कि जनसंख्या विस्फोट ने विकास के सभी अवसरों को प्रायः समाप्त कर दिया है। जो कुछ प्रगति होती है वह बढ़ती हुई जनसंख्या द्वारा निगल ली जाती है।

विकास की धीमी गति के लिए सरकार की दूषित नियोजन व्यवस्था भी उत्तरदाई रही है। गांवों में शैक्षिक सुविधाएं वांछित स्तर की नहीं हैं। स्वयं प्राइमरी स्कूलों की दशा सरकारी नियोजन पर दुखद टिप्पणी है। स्कूलों में साज-सामान एवं अध्यापकों की कमी है। गांव में अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है इसलिए ग्रामीण गरीब अनेक प्रकार के रोगों से त्रस्त हैं। अज्ञानता और पिछड़ेपन के कारण भी वे सफाई का महत्व नहीं समझते और बीमारियां उनको जीवनपर्यंत लगी रहती है। बहुत से गांवों में अच्छी यातायात व्यवस्था अभी भी बहुत दूर की बात है। यह सही है कि लिंक सड़कों के निर्माण के लिए बहुत प्रयास किए गए हैं किंतु आवश्यकताओं के परिप्रेक्ष्य में आवंटित की गई धनराशि बहुत कम है। ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम में भी अभी बहुत सी खामियां बनी हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर बिजली उत्पादन की स्थिति खराब होने के कारण¸ पीक मौसम के समय¸ जबकि सिंचाई की अत्यंत आवश्यकता होती है¸ हमेशा बिजली की कमी की शिकायत बनी रहती है। ग्रामीण में साख की शोचनीय सुविधाएं भी ग्रामीण ऋण ग्रस्तता के लिए उत्तरदाई रही हैं। यद्यपि इन सुविधाओं का बड़े स्तर पर कामों में विस्तार किया गया है किंतु स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है¸ विशेषकर इसलिए कुछ प्रभावशाली व्यक्ति इन सुविधाओं के एक बड़े अंश को हथिया लेते हैं। हमारे अधिकतर ग्रामीण गरीबी में ही पैदा होते हैं ऋण में ही जीवन-यापन करते हैं और ऋण में ही मर जाते हैं। सामयिक बेरोजगारी¸ लघु उद्योगों की दयनीय दशा और उनकी समुचित प्रगति के लिए प्रोत्साहन की कमी¸ विभिन्न सामाजिक रीति रिवाजों पर व्यर्थ का व्यय¸ इन सब ने ग्रामीण जनता को गरीब बनाने में योगदान दिया है।

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