Hindi, asked by sandeeprawani6111, 7 months ago

ग. विश्वामित्र ने क्यों कहा कि 'बाल दोस गुन गनहिं न साधू ।'​

Answers

Answered by sakshisingh13045
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Answer:

☆ कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥

खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥

उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे॥

न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे॥

गाधिसूनू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।

अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहूँ न बूझ अबूझ॥

Explanation:

=> परशुराम को क्रोधित होते हुए देखकर विश्वामित्र ने कहा कि हे मुनिवर साधु लोग तो बालक के गुण दोष की गिनती नहीं करते हैं इसलिए इसके अपराध को क्षमा कर दीजिए। परशुराम ने जवाब दिया कि यदि सामने अपराधी हो तो खर और कुल्हाड़ी में जरा सी भी करुणा नहीं होती है। लेकिन हे विश्वामित्र मैं केवल आपके शील के कारण इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ। नहीं तो अभी मैं इसी कुल्हाड़ी से इसका काम तमाम कर देता और मुझे बिना किसी परिश्रम के ही अपने गुरु के कर्ज को चुकाने का मौका मिल जाता। ऐसा सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हँसे और सोच रहे थे कि इन मुनि को सबकुछ मजाक लगता है। यह बालक फौलाद का बना हुआ और ये किसी अबोध की तरह इसे गन्ने का बना हुआ समझ रहे हैं।

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