ग) वही हरा-भरा मैदान था, वही सुनहरी चाँदनी एक निःशब्द संगीत की भाँति प्रकृति पर छायी हुई थी, वही मित्र-
समाज था। वही मनोरंजन के सामान थे। मगर जहाँ हास्य की ध्वनि थी, वहाँ अब करुण-क्रन्दन और अश्रु-
प्रवाह था।
उपयुक्त गद्यांश का संदर्भ लिखे
Answers
Answered by
15
यहां बचपन में मिलने वाली खुशी को केंद्रीय भाव माना गया है.लेखक कहना चाह रहे हैं कि जब हम बच्चे थे तब हम हंसते थे कुछ रहते थे परंतु हम जैसे जैसे बड़े होते गए ना हमारे खेलने वाले मैदान बदले हैं ना हमारे आस-पास का समाज बदला है ना हमारे मित्र बदले हैं लेकिन हमारा हंसने का जो स्वभाव था वह बदल गया हम जैसे जैसे बड़े होते गए काम और पढ़ाई में इतना उलझते चले गए कि हम हंसना भूल चुके हैं और अब हमारे पास सिर्फ अश्रु का ही प्रभाव है.
Similar questions