Hindi, asked by xttiiittugtdg, 11 months ago

गोवर्धनदास को सिपाही क्यों पकड़कर ले गए थे?​

Answers

Answered by Anonymous
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HERE IS YOUR ANSWER MATE....;

नाटक में आगे इसी गोवर्धन दास को दो सिपाही बिना किसी बात गिरफ्तार कर लेते हैं और फांसी के लिए ले जाने लगते हैं. जब वो इसकी वजह पूछता है, तो जवाब मिलता है:

बात ये है कि कल कोतवाल को फांसी का हुकुम हुआ था. जब फांसी देने को उसको ले गए, तो फांसी का फंदा बड़ा हुआ, क्योंकि कोतवाल साहब दुबले हैं. हम लोगों ने महाराज से अर्ज किया, इस पर हुक्म हुआ कि एक मोटा आदमी पकड़ कर फांसी दे दो, क्योंकि बकरी मारने के अपराध में किसी न किसी की सजा होनी जरूर है, नहीं तो न्याय न होगा. इसी वास्ते हम तुम को ले जाते हैं कि कोतवाल के बदले तुमको फांसी दें.

गोवर्धन दास पूछता है:

तो क्या और कोई मोटा आदमी इस नगर भर में नहीं मिलता, जो मुझ अनाथ फकीर को फांसी देते हो?

सिपाही का जवाब:

  • इसमें दो बात है. एक तो नगर भर में राजा के न्याय के डर से कोई मुटाता ही नहीं, दूसरे और किसी को पकड़ें, तो वह न जाने क्या बात बनावे कि हमीं लोगों के सिर कहीं न घहराय और फिर इस राज में साधु महात्मा इन्हीं लोगों की तो दुर्दशा है, इसलिए तुम्हीं को फांसी देंगे.

आगे बेगुनाह गोवर्धन दास मन ही मन स्वयं से कहता है:

  • हाय! मैं ने गुरुजी का कहना न माना, उसी का यह फल है. गुरुजी ने कहा था कि ऐसे नगर में नहीं रहना चाहिए, यह मैंने नहीं सुना. अरे, इस नगर का नाम ही अंधेर नगरी और राजा का नाम चौपट है, तब बचने की क्या आशा है. अरे, इस नगर में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है, जो फकीर को बचावे. गुरु जी कहां हो? बचाओ गुरुजी... गुरुजी..तो इस कारण मैं कह रहा था कि कहीं आप ही वो किरदार तो नहीं? और हां, मैं ये सब बातें नाटक के बारे में कह रहा हूं. अगर आप ये पढ़कर कुछ और सोचने लगे, आपका ध्यान कहीं और गया तो उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. ये सिर्फ आपकी अच्छी कल्पनाशक्ति और भारतेंदु हरीशचंद्र की कलम का जादू है.

HOPE IT'S HELPFUL....:-)

Answered by aviguru111
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Answer:

अंधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।

यह नाटक ६ अंकों में विभक्त है। इसमें अंक के बजाय दृश्य शब्द का प्रयोग किया गया है। पहले दृश्य में महंत अपने दो चेलों के साथ दिखाई पड़ते हैं जो अपने शिष्यों गोवर्धन दास और नारायण दास को पास के शहर में भिक्षा माँगने भेजते हैं। वे गोवर्धन दास को लोभ के बुरे परिणाम के प्रति सचेत करते हैं। दूसरे दृश्य में शहर के बाजार का दृश्य है जहाँ सबकुछ टके सेर बिक रहा है। गोवर्धन दास बाजार की यह कफैयत देखकर आनन्दित होता है और सात पैसे में ढाई सेर मिठाई लेकर अपने गुरु के पास लौट जाता है। तीसरे दृश्य में महंत के पास दोनों शिष्य लौटते हैं। नारायण दास कुछ नहीं लाता है जबकि गोबर्धन दास ढाई सेर मिठाई लेकर आता है। महंत शहर में गुणी और अवगुणी को एक ही भाव मिलने की खबर सुनकर सचेत हो जाते हैं और अपने शिष्यों को तुरंत ही शहर छोड़ने को कहते हैं। वे कहते हैं- "सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास। ऐसे देश कुदेस में, कबहूँ न कीजै बास।।" नारायण दास उनकी बात मान लेता है जबकि गोवर्धन दास सस्ते स्वादिष्ट भोजन के लालच में वहीं रह जाने का फैसला करता है। चौथे दृश्य में अंधेर नगरी के चौपट राजा के दरबार और न्याय का चित्रण है। शराब में डूबा राजा फरियादी के बकरी दबने की शिकायत पर बनिया से शुरु होकर कारीगर, चूनेवाले, भिश्ती, कसाई और गड़रिया से होते हुए कोतवाल तक जा पहुंचता है और उसे फांसी की सजा सुना देता है। पाँचवें दृश्य में मिठाई खाते और प्रसन्न होते मोटे हो गए गोवर्धन दास को चार सिपाही पकड़कर फांसी देने के लिए ले जाते हैं। वे उसे बताते हैं कि बकरी मरी इसलिए न्याय की खातिर किसी को तो फाँसी पर जरूर चढ़ाया जाना चाहिए। जब दुबले कोतवाल के गले से फांसी का फँदा बड़ा निकला तो राजा ने किसी मोटे को फाँसी देने का हुक्म दे दिया। छठे दृश्य में शमशान में गोवर्धन दास को फाँसी देने की तैयारी पूरी हो गयी है। तभी उसके गुरु महंत जी आकर उसके कान में कुछ मंत्र देते हैं। इसके बाद गुरु शिष्य दोनों फाँसी पर चढ़ने की उतावली दिखाते हैं। राजा यह सुनकर कि इस शुभ सइयत में फाँसी चढ़ने वाला सीधा बैकुंठ जाएगा स्वयं को ही फाँसी पर चढ़ाने की आज्ञा देता है। इस तरह अन्यायी और मूर्ख राजा स्वतः ही नष्ट हो जाता है।

  • महन्त - एक साधू
  • गोवर्धन दास - महंत का लोभी शिष्य
  • नारायण दास- महंत का दूसरा शिष्य
  • कबाबवाला कबाब विक्रेता
  • घासीराम :चना बेचने वाला
  • नरंगीवाली - नारंगी बेचने वाली
  • हलवाई - मिठाई बेचने वाला
  • कुजड़िन - सब्जी बेचने वाली
  • मुगल - मेवे और फल बेचने वाला
  • पाचकवाला - चूरन विक्रेता
  • मछलीवाली - मछली बेचने वाल
  • जातवाला - जाति बेचने वाला
  • बनिया
  • राजा - चौपट राजा
  • मन्त्री - चौपट राजा का मंत्री
  • माली
  • दो नौकर, राजा के दो नौकर
  • फरियादी - राजा से न्याय माँगने वाला
  • कल्लू - बनिया जिसके दीबार से फरियादी की बकरी मरी
  • कारीगर - कल्लु बनिया की दीबार बनाने वाला
  • चूनेवाला - दीवार बनाने के लिए मसाला तैयार करने वाला
  • भिश्ती - दीवार बनाने के मसाले में पानी डालने वाला
  • कस्साई - भिश्ती के लिए मशक बनाने वाला
  • गड़ेरिया - - कसाई को भेंड़ बेचने वाला
  • कोतवाल -
  • चार सिपाही - राजा के सिपाही

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