गाय की आत्मकथा निबंध
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मैं गाय हूँ। सब मुझे इसी नाम से जानते मैं जंतु साम्राज्य में रीढ़धारी, स्तनधारी, शाकाहारी हूँ | मैं जानवर से मनुष्य द्वारा पाली गई पालतू पशु बन गयी हूँ | इंसान मुझे पालता है मेरी सेवा करता है ,बदले में मैं उसे दूध, बैल, साँढ़ और गोबर देती हूँ |
लेकिन जब तक मैं इंसान की सेवा करने लायक रहती हूँ, तब तक तो वह मेरा ख़्याल रखता है। लेकिन ज्यों-ज्यों उम्र होने लगती है, त्यों-त्यों हमारा जीवन नरक हो जाता है। इंसान हमें छोड़ देता तब उसे कोई मतलब नहीं होता है हमसे | पेट भरने के लिए हमें सड़कों पर भटकता पड़ता है।
हमें ऐसा नहीं करना चाहिए गाय का ख्याल रखना चाहिए।
Answer:
मैं इस संसार की सबसे पूजनीय जंतुओं में से सर्वश्रेष्ठ , सर्वोच्च जंतु हूं ।
मुझे इस संसार में गौ और गाय के नाम से जाना जाता है । मैं देव काल से ही इस संसार में सबों की मदद करते आई हूं।
मैं इंसानों के लिए बहुत लाभदाई हूं । मैं उन्हें उनकी सेवा के बदले दूध , गोबर जैसे उपयोगी पदार्थ प्रदान करती हूं। जिससे वह अपने दिनचर्या के काम कर पाते हैं । उनका सही ढंग से उपयोग करते हैं।
लेकिन जब तक मैं उन्हें उनके मन मुताबिक दूध देती रही , तब तक वह मुझे पूजेंगे और मेरी सेवा करेंगे ।
जैसे - जैसे मेरी उम्र ढलते जाएगी , वैसे वैसे मैं उनसे दूर होती जाऊंगी ।
वह मुझे देखना पसंद नहीं करेंगे । क्योंकि अब मैं पहले जैसी दूध नहीं देती , और मेरा शरीर पहले जैसा तंदुरुस्त नहीं रहा । मुझे खिलाने पिलाने में बहुत उसे खर्च पड़ेगा लेकिन इस बुढी गाय के पीछे कौन अपना पैसा खर्च करना चाहेगा ।
मुझे लावारिस कर दिया जाएगा और मैं अपना पेट भरने के लिए दर-दर की ठोकरे खाऊंगी और सड़कों पर आवारा गायों की तरह घूमती रहूंगी ।मुझे तो कसाई भी नहीं खरीदेगा। बूढ़ी हो जाने के बाद ।
क्योंकि मेरे शरीर में मांस ही नहीं रहेगा।
हिंदू संस्कृति में इसे माता का दर्जा दिया जाता है । जिसका हम बहुत अच्छे से सेवा करते हैं । जिस प्रकार हमारी मां होती है । उस प्रकार यह गौमाता भी हमारी मां ही होती है। हमें गायों को लावारिस नहीं करना चाहिए।
उन्हें बूढ़े हो जाने के पश्चात गौशालाओं में दे देना चाहिए । जहां उनकी देखरेख बहुत अच्छी तरह से होती हो ।
धन्यवाद
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