Physics, asked by yashbhankushwahakeol, 1 month ago

ग) यदि नाभिक के अन्दर बन्धित व न्यूक्लिऑनों को एक-दूसरे से अलग कर दिया
जाए तो उनके द्रव्यमानों का योग नाभिक के द्रव्यमान की अपेक्षा अधिक होता
हे। द्रव्यमान में यह अन्तर कहाँ से आया? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
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Answered by shivasp84000
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Answer:

विभिन्न परमाणुओं के नाभिकों के स्थायित्व की तुलना करने के लिये नाभिकों की ‘प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा’ (binding energy per nucleon) ज्ञात करते हैं। किसी नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा जितनी अधिक होती है; नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होता है। विभिन्न परमाणुओं के नाभिकों के स्थायित्व का अध्ययन करने के लिये इनकी प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा तथा द्रव्यमान-संख्या के बीच ग्राफ खींचा जाता है। प्राप्त वक्र को बन्धन-ऊर्जा वक्र’ कहते हैं (चित्र)। इस वक़ से निम्न महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त होते हैं 1. द्रव्यमान संख्या लगभग A = 50 से A = 80 तक के बीच वक्र में एक सपाट शिखर (flat maximum) है जिसके संगत औसत प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा लगभग 8.5 MeV है। अतः वे नाभिक जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 50 व 80 के बीच हैं, अधिक स्थायी हैं। इनमें Fe56, जिसकी प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा अधिकतम (लगभग 8.8 MeV) हैं, सबसे अधिक स्थायी हैं Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/494356/

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