Hindi, asked by hussainbasha02282, 4 months ago

gaam manane ke liye kya chahehe​

Answers

Answered by mittalraval580120
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Explanation:

विषय से संबंधित सूक्ति अथवा कविता की पंक्तियों का प्रयोग भी कर सकते हैं। इससे आपका अनुच्छेद बहुत अधिक प्रभावशाली और रोचक लगेगा।

(9) अनुच्छेद के अंत में निष्कर्ष समझ में आ जाना चाहिए यानी विषय समझ में आ जाना चाहिए।

अनुच्छेद की प्रमुख विशेषताएँ -

(1) अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर व्यक्त करता है। इसमें अन्य विचार नहीं रहते।

(2) अनुच्छेद के वाक्य-समूह में उद्देश्य की एकता रहती है। अप्रासंगिक बातों को हटा दिया जाता है। केवल बहुत अधिक महत्वपूर्ण बातों को ही अनुच्छेद में रखा जाता है।

सम्बद्ध होते है। वाक्य छोटे तथा एक दुसरे से जुड़े होते हैं।

(4) अनुच्छेद एक स्वतन्त्र और पूर्ण रचना है, जिसका कोई भी वाक्य अनावश्यक नहीं होता।

(5) उच्च कोटि के अनुच्छेद-लेखन में विचारों को इस क्रम में रखा जाता है कि उनका आरम्भ, मध्य और अन्त आसानी से व्यक्त हो जाए और किसी को भी समझने में कोई परेशानी न हो।

(6) अनुच्छेद सामान्यतः छोटा होता है, किन्तु इसकी लघुता या विस्तार विषयवस्तु पर निर्भर करता है। लेखन के संकेत बिंदु के आधार पर विषय का क्रम तैयार करना चाहिए।

(7) अनुच्छेद की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।

समय किसी के लिए नहीं रुकता

'समय' निरंतर बीतता रहता है, कभी किसी के लिए नहीं ठहरता। जो व्यक्ति समय के मोल को पहचानता है, वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है। समय बीत जाने पर किए गए कार्य का कोई फल प्राप्त नहीं होता और पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं आता। जो विद्यार्थी सुबह समय पर उठता है, अपने दैनिक कार्य समय पर करता है तथा समय पर सोता है, वही आगे चलकर सफल व उन्नत व्यक्ति बन पाता है। जो व्यक्ति आलस में आकर समय गँवा देता है, उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। संतकवि कबीरदास जी ने भी अपने दोहे में कहा है -

''काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।

पल में परलै होइगी, बहुरि करेगा कब।।''

समय का एक-एक पल बहुत मूल्यवान है और बीता हुआ पल वापस लौटकर नहीं आता। इसलिए समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक विद्यार्थी को नियमित रूप से अध्ययन करना चाहिए और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी चाहिए। जो समय बीत गया उस पर वर्तमान समय में सोच कर और अधिक समय बरबाद न करके आगे अपने कार्य पर विचार कर-लेना ही बुद्धिमानी है।

अभ्यास का महत्त्व

यदि निरंतर अभ्यास किया जाए, तो किसी भी कठिन कार्य को किया जा सकता है। ईश्वर ने सभी मनुष्यों को बुद्धि दी है। उस बुद्धि का इस्तेमाल तथा अभ्यास करके मनुष्य कुछ भी सीख सकता है। अर्जुन तथा एकलव्य ने निरंतर अभ्यास करके धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त की। उसी प्रकार वरदराज ने, जो कि एक मंदबुद्धि बालक था, निरंतर अभ्यास द्वारा विद्या प्राप्त की और ग्रंथों की रचना की। उन्हीं पर एक प्रसिद्ध कहावत बनी -

''करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।

रसरि आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।''

यानी जिस प्रकार रस्सी की रगड़ से कठोर पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं, उसी प्रकार निरंतर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। यदि विद्यार्थी प्रत्येक विषय का निरंतर अभ्यास करें, तो उन्हें कोई भी विषय कठिन नहीं लगेगा और वे सरलता से उस विषय में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे।

कहा भी गया है कि,"परिश्रम ही सफलता की कुँजी है।"मित्र के जन्म दिन का उत्सव

मेरे मित्र रोहित का जन्म-दिन था। उसने अन्य मित्रों के साथ मुझे भी बुलाया। रोहित के कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे, किन्तु अधिकतर मित्र ही उपस्थित थे। घर के आँगन में ही समारोह का आयोजन किया गया था। उस स्थान को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया गया था। हर जगह झण्डियाँ और गुब्बारे थे। आँगन में लगे एक पेड़ पर रंग-बिरंगे बल्ब जगमग कर रहे थे। जब मैं पहुँचा तो मेहमान आने शुरू ही हुए थे। मेहमान रोहित के लिए कोई-न-कोई उपहार लेकर आते, उसके निकट जाकर बधाई देते और रोहित उनका धन्यवाद करता। क्रमशः लोग छोटी-छोटी टोलियों में बैठकर गपशप करने लगे। संगीत की मधुर ध्वनियाँ गूँज रही थी। एक-दो मित्र उठकर नृत्य करने लगे। कुछ मित्र तालियों बजा कर अपना योगदान देने लगे। चारों ओर उल्लास का वातावरण था।

सात बजे के लगभग केक काटा गया। सब मित्रों ने तालियाँ बजाई और मिलकर जन्मदिन की बधाई का गीत गाया। माँ ने रोहित को केक खिलाया। अन्य लोगों ने भी केक खाया। फिर सभी खाना खाने लगे। खाने में अनेक प्रकार की मिठाइयाँ और नमकीन थे। तब हमने रोहित को एक बार फिर बधाई दी, उसकी दीर्घायु की कामना की और अपने-अपने घर को चल दिए। वह कार्यक्रम इतना अच्छा था कि अब भी स्मरण हो आता है।

वन और पर्यावरण का सम्बन्ध

संकेत-बिंदु -

वन प्रदुषण-निवारण में सहायक,

वनों की उपयोगिता,

वन संरक्षण की आवश्यकता,

वन संरक्षण के उपाय।

वन और पर्यावरण का बहुत गहरा सम्बन्ध है। प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए पृथ्वी के 33% भाग को अवश्य हरा-भरा होना चाहिए। वन जीवनदायक हैं। ये वर्षा कराने में सहायक होते हैं। धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। वनों से भूमि का कटाव रोका जा सकता है। वनों से रेगिस्तान का फैलाव रुकता है, सूखा कम पड़ता है। इससे ध्वनि प्रदुषण की भयंकर समस्या से भी काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों के भण्डार हैं। वनों से हमें लकड़ी, फल, फूल, खाद्य पदार्थ, गोंद तथा अन्य सामान प्राप्त होते हैं। आज भारत में दुर्भाग्य से केवल 23 % वन बचे हैं। जैसे-जैसे उद्योगों को संख्या बढ़ रही है, शहरीकरण हो रहा है, वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता और बढ़ती जा रही है। वन संरक्षण एक कठिन एवं महत्वपूर्ण काम है। इसमें हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी और अपना योगदान देना होगा। अपने घर-मोहल्ले, नगर में अत्यधिक संख्या में वृक्षारोपण को बढाकर इसको एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाना होगा। तभी हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ रख पाएँगे।

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