gaban upanyas ki basha shali
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मुंशी प्रमेचंद को भाषाओं का जदूगर कहा जाता है और गबन की भाषा से यह स्पष्ट होता है कि जैसे भाषा उनके गुलाम थे। जैसे उन्होंने कहानी की शुरूआत में लिखा 'बरसात के दिन हैं, सावन का महीना। आकाश में सुनहरी घटाएँ छायी हुई हैं। रह-रहकर 'रिमझिम वर्षा होने लगती है।
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