Hindi, asked by sabiharupawala, 7 months ago

गगन का चांद कविता में स्वप्न को बुलबुले के समान क्यों बताया गया है​

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Answered by HandSomeBoy68
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रात यो कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !

उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता,

और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूं ?

मैं चुका हूं देख मनु को जनमते-मरते,

और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी

चांदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न ? है वह बुलबुला जल का,

आज उठता और कल फिर फूट जाता है,

किन्तु, तो भी धन्य, ठहरा आदमी ही तो ?

बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली,

चाँद ! देख फिर से, मुझको जानता है तू ?

स्वप्न मेरे बुलबुले हैं ? है यही पानी ?

आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,

आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,

और उस पर नींव रखती हूं नये घर की,

इस तरह दीवार फ़ौलादी उठाती हूं।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी

कल्पना की जीभ में भी धार होती है,

बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,

स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,

"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,

रोकिये, जैसे बने इन स्वप्न वालों को,

स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।"

Explanation:

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Answered by Akiriti
1

Answer:

रात यो कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !

उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता,

और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूं ?

मैं चुका हूं देख मनु को जनमते-मरते,

और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी

चांदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न ? है वह बुलबुला जल का,

आज उठता और कल फिर फूट जाता है,

किन्तु, तो भी धन्य, ठहरा आदमी ही तो ?

बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली,

चाँद ! देख फिर से, मुझको जानता है तू ?

स्वप्न मेरे बुलबुले हैं ? है यही पानी ?

आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,

आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,

और उस पर नींव रखती हूं नये घर की,

इस तरह दीवार फ़ौलादी उठाती हूं।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी

कल्पना की जीभ में भी धार होती है,

बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,

स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,

"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,

रोकिये, जैसे बने इन स्वप्न वालों को,

स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।"

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