गजल की पंक्तियों का तात्पर्य :
नींव क़े अंदर दिखो .............
आइना बनकर दिखो .............
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hy mate here is your anshwer=>>
नींव के अंदर दिखो से तातेपय है की कोई भी काम करो वो शरुआते से करना चाहिए!
आइना बनकर दिखो से तातेपय है की एक महान आदमी बनो यह की मदद करो!
i hope it help you☺✨✨
नींव के अंदर दिखो से तातेपय है की कोई भी काम करो वो शरुआते से करना चाहिए!
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''नींव क़े अंदर दिखो ............ ग़ज़ल की इन पंक्तियों का यह तात्पर्य है कि यह आवश्यक नहीं कि आप किसी भी कार्य-रूपी इमारत के स्वर्णिम शिखर के रूप में दिखाई दो । अधिक महत्वपूर्ण नींव का पत्थर होता है | गजलकार ने कहा है कि यदि आपको समाज में प्रतिष्ठा चाहिए या नाम कमाने का शौक है तो आप कार्यरूपी इमारत की नींव के भीतर रहकर भी स्वयं का नाम उजागर कर सकते हैं । ये तो सभी जानते है की यदि नींव का पत्थर मज़बूत नहीं होगा तो इमारत बुलंद नहीं बनेगी |
आइना बनकर दिखो ............गजलकार माणिक वर्मा इन पंक्तियों के माध्यम से कहते हैं कि माना कि यह शहर पत्थरों का है अर्थात इस के कायदे-कानून कठोर है किंतु हमें हताश नहीं होना चाहिए और अपनी जिंदगी को जोशरूपी आईना बनाकर उभारना चाहिए, जिसमें जीवन की सूरत अखंड एवं अटूट दिखाई दे । उनका तात्पर्य है कि मनुष्य उत्साहपूर्वक निरंतर सत्कर्म करता रहे । अडचनें तो आती रहेंगी |
आइना बनकर दिखो ............गजलकार माणिक वर्मा इन पंक्तियों के माध्यम से कहते हैं कि माना कि यह शहर पत्थरों का है अर्थात इस के कायदे-कानून कठोर है किंतु हमें हताश नहीं होना चाहिए और अपनी जिंदगी को जोशरूपी आईना बनाकर उभारना चाहिए, जिसमें जीवन की सूरत अखंड एवं अटूट दिखाई दे । उनका तात्पर्य है कि मनुष्य उत्साहपूर्वक निरंतर सत्कर्म करता रहे । अडचनें तो आती रहेंगी |
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