Hindi, asked by shobham754, 9 months ago

Gajal poem bhavarth 10 th standard

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Answered by ramesh87901
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Explanation:

गगन दमामा बाजिया, पड्या निसानैं घाव।

खेत बुहार्‌या सूरिमै, मुझ मरणे का चाव॥1॥

भावार्थ - गगन में युद्ध के नगाड़े बज उठे, और निशान पर चोट पड़ने लगी। शूरवीर ने रणक्षेत्र को झाड़-बुहारकर तैयार कर दिया, तब कहता है कि `अब मुझे कट-मरने का उत्साह चढ़ रहा है।'

`कबीर' सोई सूरिमा, मन सूं मांडै झूझ।

पंच पयादा पाड़ि ले, दूरि करै सब दूज॥2॥

भावार्थ - कबीर कहते हैं - सच्चा सूरमा वह है, जो अपने वैरी मन से युद्ध ठान लेता है, पाँचों पयादों को जो मार भगाता है, और द्वैत को दूर कर देता है। [ पाँच पयादे, अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह और मत्सर। द्वैत अर्थात् जीव और ब्रह्म के बीच भेद-भावना।]

`कबीर' संसा कोउ नहीं, हरि सूं लाग्गा हेत।

काम क्रोध सूं झूझणा, चौड़ै मांड्या खेत॥3॥

भावार्थ - कबीर कहते हैं -- मेरे मन में कुछ भी संशय नहीं रहा, और हरि से लगन जुड़ गई। इसीलिए चौड़े में आकर काम और क्रोध से जूझ रहा हूँ रण-क्षेत्र में।

सूरा तबही परषिये, लड़ै धणी के हेत।

पुरिजा-पुरिजा ह्वै पड़ै, तऊ न छांड़ै खेत॥4॥

भावार्थ - शूरवीर की तभी सच्ची परख होती है, जब वह अपने स्वामी के लिए जूझता है। पुर्जा-पुर्जा कट जाने पर भी वह युद्ध के क्षेत्र को नहीं छोड़ता।

अब तौ झूझ्या हीं बणै, मुड़ि चाल्यां घर दूर।

सिर साहिब कौं सौंपतां, सोच न कीजै सूर॥5॥

भावार्थ - अब तो झूझते बनेगा, पीछे पैर क्या रखना ? अगर यहाँ से मुड़ोगे तो घर तो बहुत दूर रह गया है। साईं को सिर सौंपते हुए सूरमा कभी सोचता नहीं, कभी हिचकता नहीं।

जिस मरनैं थैं जग डरै, सो मेरे आनन्द।

कब मरिहूं, कब देखिहूं पूरन परमानंद॥6॥

भावार्थ - जिस मरण से दुनिया डरती है, उससे मुझे तो आनन्द होता है ,कब मरूँगा और कब देखूँगा मैं अपने पूर्ण सच्चिदानन्द को !

कायर बहुत पमांवहीं, बहकि न बोलै सूर।

काम पड्यां हीं जाणिये, किस मुख परि है नूर॥7॥

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