Hindi, asked by lakshyawadhwa0405, 6 months ago

गलत विज्ञापनों से भटकाव per nibandh​

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Answered by sadiqanoori10082010
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युवा किसी भी समाज और राष्ट्र के कर्णधार हैं, वे उसके भावी निर्माता हैं। चाहे वह नेता या शासक के रूप में हांे, चाहे डाॅक्टर, इन्जीनियर, वैज्ञानिक, साहित्यकार व कलाकार के रूप में हांे। इन सभी रूपों में उनके ऊपर अपनी सभ्यता, संस्कृति, कला एवम् ज्ञान की परम्पराओं को मानवीय संवेदनाओं के साथ आगे ले जाने का गहरा दायित्व होता है। पर इसके विपरीत अगर वही युवा वर्ग उन परम्परागत विरासतों का वाहक बनने से इन्कार कर दे तो निश्चिततः किसी भी राष्ट्र का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

युवा शब्द अपने आप में ही उर्जा और आन्दोलन का प्रतीक है। युवा को किसी राष्ट्र की नींव तो नहीं कहा जा सकता पर यह वह दीवार अवश्य है जिस पर राष्ट्र की भावी छतों को सम्हालने का दायित्व है। भारत की कुल आबादी में युवाओं की हिस्सेदारी करीब 50 प्रतिशत है जो कि विश्व के अन्य देशों के मुकाबले काफी है। इस युवा शक्ति का सम्पूर्ण दोहन सुनिश्चित करने की चुनौती इस समय सबसे बड़ी है। जब तक यह ऊर्जा और आन्दोलन सकारात्मक रूप में है तब तक तो ठीक है, पर ज्यों ही इसका नकारात्मक रूप में इस्तेमाल होने लगता है वह विध्वंसात्मक बन जाती है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर किन कारणों से युवा उर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है? वस्तुतः इसके पीछे जहाँ एक ओर अपनी संस्कृति और जीवन मूल्यों से दूर हटना है, वहीं दूसरी तरफ हमारी शिक्षा व्यवस्था का भी दोष है। इन सब के बीच आज का युवा अपने को असुरक्षित महसूस करता है, फलस्वरूप वह शार्टकट तरीकों से लम्बी दूरी की दौड़ लगाना चाहता है। जीवन के सारे मूल्यों के उपर उसे ‘अर्थ‘ भारी नजर आता है। इसके अलावा समाज में नायकों के बदलते प्रतिमान ने भी युवाओं के भटकाव में कोई कसर नहीं छोड़ी है। फिल्मी परदे और अपराध की दुनिया के नायकों की भांति वह रातों-रात उस शोहरत और मंजिल को पा लेना चाहता है, जो सिर्फ एक मृगण्तृष्णा है। ऐसे में एक तो उम्र का दोष, उस पर व्यवस्था की विसंगतियाँ, सार्वजनिक जीवन में आदर्श नेतृत्व का अभाव एवम् नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन ये सारी बातें मिलकर युवाओं को कुण्ठाग्रस्त एवम् भटकाव की ओर ले जाती हैं, नतीजन-अपराध, शोषण, आतंकवाद, अशिक्षा, बेरोजगारी एवम् भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ जन्म लेती हंै।

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