Hindi, asked by Rashmi2003, 1 year ago

गणेशोत्सव eassy in hindi

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Answered by Krishnagupta11
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विघ्न विनाशक, मंगलकर्ता, ऋद्धि -सिद्धि के दाता विद्या और बुद्धि के आगार गणपति की पूजा आराधना का सार्वजनिक उत्सव ही गणेश उत्सव है। भाद्रपपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के जन्मदिन पर यह उत्सव मनाया जाता है। 


वैदिक काल से लेकर आज तक, सिंध और तिब्बत से लेकर जापान और श्रीलंका तथा भारत में जन्में प्रत्येक विचार और विश्वास में गणपति समाए हैं। जैन संप्रदाय में ज्ञान का संकलन करने वाले गणेश या गणाध्यक्ष की मान्यता है तो बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा का विश्वास कभी यहां तक रहा है गणपति स्तुति के बिना मंत्र सिद्धि नहीं हो सकती। नेपाली तथा तिब्बती वज्रयानी बौद्ध अपने आराध्य तथागत की मूर्ति के बगल में गणेश जी को स्थापित रखते रहे हैं। सुदूर जापान तक प्रभावशाली राष्ट्रों में गणपति पूजा का कोई ना कोई रूप मिल जाएगा। 


पुराणों में रूपकों की भरमार के कारण गणपति के जन्म का आश्चर्यजनक रूपकों में अतिरंजित वर्णन है। अधिकांश कथाएं ब्रह्मवैवर्त पुराण में है। गणपति कहीं शिव पार्वती के पुत्र माने गए हैं तो कहीं पार्वती के ही।


पार्वती से शिव का विवाह होने के बहुत दिनों तक भी पार्वती को कोई शिशु न दे पाई तो महादेव ने पार्वती से पुण्यक-व्रत करने का वर दिया। परिणाम स्वरुप गणपति का जन्म हुआ।


नवजात शिशु को देखने ऋषि, मुनि, देवगण आए। आनेवालों में शनि देव भी थे। शनि देव जिस बालक को देखते हैं उनका सिर भस्म हो जाता है वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। इसलिए शनी ने बालक को देखने से इंकार कर दिया। पार्वती के आग्रह पर जैसे ही शनी ने बालक पर दृष्टि डाली उसका सिर भस्म हो गया। 


सिर भस्म होने या कटने के संबंध में दूसरी कथा इस प्रकार है-एक बार पार्वती स्नान करने गईं। द्वार पर गणेश को बैठा गई आदेश दिया कि जब तक मैं स्नान करके न लौटूं किसी को प्रवेश न करने देना। इसी बीच शिव आ गए। गणेश ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें भी रोका। शिव क्रुद्ध हुए और बालक का सिट काट दिया।


तीसरी कथा इस प्रकार है- जगदम्बिका लीलायी हैं। कैलाश पर अपने अन्तःपुर में वे विराजमान थी। सेविकाएँ उबटन लगा रही थीं। शरीरे से गिरे उबटन को उन आदिशक्तियों को एकत्र किया और एक मूर्ति बना डाली। उन चेतानामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं। उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा मांगी। उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर ना आने पाए। बालक डंडा लेकर द्वार पर खड़ा हो गया। भगवान शंकर अंतःपुर में आने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान भूतनाथ  कम विनोदी नहीं है। उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी बालक को द्वार से हटाने की। इंद्र, वरुण, कुबेर, यम आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए। वह महाशक्ति का पुत्र जो था। इसका इतना औद्धत्य उचित नहीं फलतः भगवान शंकर ने त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया। 


पार्वती रो पड़ीं। व्रत की तपस्या से प्राप्त प्राप्त शिशु का असमय चले जाना दुःखदायी था। उस समय विष्णु के परामर्श से शिशु हाथी का सिर काट कर जोड़ दिया गया। मृत शिशु जी उठा पर उनका शीश हाथी का हो गया। गणपति गजानन हो गए। 


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Answered by durgabhavani6663
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