gandagi mukt mera gaun pr poem
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मेरा गाँव मुझसे बात करता है
मै कहता हूँ उससे तू क्यों पल पल बदलता है
तू पहले जैसा नहीं रहा,वो गाँव का अल्हड़पन कहाँ
जूगूनूओं की टिमटिमाती रात कहाँ
वो तितलियां कहाँ और बरसात कहाँ
मेरी शिकायत पर मेरा गाँव मुझ पे मुस्कुराया
और हमको ये समझाया.....
मैं वही हूँ और हूँ पहले जैसा
पर क्या तेरा दिल भी है उस बच्चे जैसा
तितलियां अब भी हैं , वो जुगनुओं की रात अभी है
वो आम के पेड़ अभी है और वो बरसात अभी है
गाँव की बारिश में अल्हड़ता से कब से ना भीगा होगा
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