Gandhi ji ke darshan vicharon ki prasangikta per nibandh likhen so shabdon se 200 shabdon mein Hindi mein Hindi
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गांधीजी के जीवन का मूल मंत्र था -" सादा जीवन उच्च विचार" उनका दर्शन मुख्यतः सत्य और अहिंसा पर आधारित था इसीलिए उनके विचारों की प्रासंगिकता, हमारे अतीत में भी थी ; वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगी । वस्तुतः सत्य और अहिंसा ऐसे हथियार है जिनमें मानव मात्र को निहत्था अर्थात समर्पित करने की असीम शक्ति है । यही कारण था कि वे कहते थे ,"पाप से घृणा करो पापी से नहीं"। उनके उद्गार से जीव मात्र के प्रति उनकी करुणा झलकती है ।
हम मनुष्य हैं हमसे गलतियां हो सकती है किंतु सच्चाई को स्वीकार कर लेने और क्षमा मांग लेने से हम छोटे नहीं हो जाते है इस सत्य में गांधीजी की सिखावन भरी हुई है । अहिंसा के पुजारी थे बापू क्योंकि वे जानते थे कि बुराई को हिंसा से नहीं मिटाया जा सकता है । बुराई को मिटाने की सामर्थ्य केवल अच्छाई में ही है। इसी कारण से वे वैष्णव संप्रदाय में प्रचलित (नरसी मेहता द्वारा रचित ) भजन " वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड पराई जाणे रे पर दुखे उपकार करे तोय मन अभिमान न आणे रे "अपनी प्रार्थना में गाते थे । इस भजन का सार यही है कि "वैष्णव (परमात्मा का जन या व्यक्ति ) वहीं व्यक्ति है जो दूसरों की पीड़ा को समझता है और मदद हेतु सदा तत्पर रहता है ,इतना ही नहीं इस अच्छाई का जो अभिमान या अहंकार भी नही करता है |"
ये सद्गुण बिरलों मे ही पाया जाता है कि अच्छे कार्यों का अभिमान न हो | अस्तु हमें ये सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हम कभी भी अपनी अच्छाइयों का अहंकार न करें क्योंकि अहंकार मनुष्य के पतन का कारण बनता है | उनके भजन मे " ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको संमति दे भगवान "भी हुआ करता था जो आज भी प्रासंगिक है | इसमे परमशक्ति से अच्छी बुद्धि या सद्बुद्धि की माँग की गई है |