Gandhi ji ke upr latter
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इलाहाबाद. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अंदर गहरा आत्मविश्वास था। वो अपने साथियों को लेकर काफी गंभीर रहते थे। यही कारण है कि एक बार दाए हांथ की उंगली में असहनीय पीड़ा के बावजूद अपने बाएं हाथ से पत्र लिखा था। पत्र में उनकी यह पीड़ा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
महात्मा गांधी हमेशा दूसरों के लिए प्रेरणादायक रहे हैं। उनके हार मानने वालों में से नहीं थे। वो अपने कार्य को खुद से करने में ज्यादा विश्वास मानते थे। वहीं जहां बात अपने दोस्तों व नजदीकीयों कि हो तो वो सारे दुख दर्द भूल जाते थे। कुछ ऐसा ही उनके द्वारा बाएं हाथ से लिखे एक पत्र में देखा जा सकता है। यह पत्र उन्होंने बनारसीदास को लिखा है। पत्र के प्रारंभ में उन्होंने लिखा है “भाई बनारसी दास जी, मेरी दाइनी अंगुली में दर्द होने के कारण मैं बांये हाथ से लिखता हूं”। गांधी जी ने यह पत्र किसी को पैसे देने के संबंध में लिखा है।
पत्र के अंतिम पंक्ति में लिखा है “तुम्हारे पत्र के अंतिम हिस्से में मुझे रोष और निराशा प्रतीत होते हैं, ऐसा क्यूं।” गांधी जी द्वारा लिखा गया यह पत्र क्षेत्रिय अभिलेखागार (संस्कृतिक विभाग यूपी) व गांधी विचार एंव शांति अध्ययन संस्थान इविवि की ओर से लगाई गई दुर्लभ अभिलेख प्रदर्शनी एवं विचार गोष्ठी में लगाया गया है। इसके साथ ही सीएफ एंड्रयूज पर विशाल भारत के विशेषांक पर जनवरी 1941 में बापू द्वारा लिखा गया संदेश भी लगाया गया है। महात्मां गांधी ने अपने संदेश में लिखा है कि “एंड्रयूज बंधु इसलिए हुए क्योंकि वो सचमुच दीन के बंधु थे। इनको स्मरणार्थ जो कुछ किया जाय कम ही होगा।” मालूम हो कि बनारसीदास चतुर्वेदी और एंड्रयूज के प्रति गांधी जी के अंदर काफी सम्मान था। बनारसीदास चतुर्वेदी हिन्दी साहित्य व पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति थे। इंदौर में गांधी जी की अध्यक्षता में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन बनारसीदास महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए थे।
महात्मा गांधी हमेशा दूसरों के लिए प्रेरणादायक रहे हैं। उनके हार मानने वालों में से नहीं थे। वो अपने कार्य को खुद से करने में ज्यादा विश्वास मानते थे। वहीं जहां बात अपने दोस्तों व नजदीकीयों कि हो तो वो सारे दुख दर्द भूल जाते थे। कुछ ऐसा ही उनके द्वारा बाएं हाथ से लिखे एक पत्र में देखा जा सकता है। यह पत्र उन्होंने बनारसीदास को लिखा है। पत्र के प्रारंभ में उन्होंने लिखा है “भाई बनारसी दास जी, मेरी दाइनी अंगुली में दर्द होने के कारण मैं बांये हाथ से लिखता हूं”। गांधी जी ने यह पत्र किसी को पैसे देने के संबंध में लिखा है।
पत्र के अंतिम पंक्ति में लिखा है “तुम्हारे पत्र के अंतिम हिस्से में मुझे रोष और निराशा प्रतीत होते हैं, ऐसा क्यूं।” गांधी जी द्वारा लिखा गया यह पत्र क्षेत्रिय अभिलेखागार (संस्कृतिक विभाग यूपी) व गांधी विचार एंव शांति अध्ययन संस्थान इविवि की ओर से लगाई गई दुर्लभ अभिलेख प्रदर्शनी एवं विचार गोष्ठी में लगाया गया है। इसके साथ ही सीएफ एंड्रयूज पर विशाल भारत के विशेषांक पर जनवरी 1941 में बापू द्वारा लिखा गया संदेश भी लगाया गया है। महात्मां गांधी ने अपने संदेश में लिखा है कि “एंड्रयूज बंधु इसलिए हुए क्योंकि वो सचमुच दीन के बंधु थे। इनको स्मरणार्थ जो कुछ किया जाय कम ही होगा।” मालूम हो कि बनारसीदास चतुर्वेदी और एंड्रयूज के प्रति गांधी जी के अंदर काफी सम्मान था। बनारसीदास चतुर्वेदी हिन्दी साहित्य व पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति थे। इंदौर में गांधी जी की अध्यक्षता में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन बनारसीदास महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए थे।
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