Hindi, asked by manojkumargaya60, 9 months ago

Gandhiji aur swachata par nibandh

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Answered by Deveshpunjabi15
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स्वच्छता और महात्मा गांधी

बृजेन्द्र रेही====महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि देते हुए देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था कि गांधी जी एक महान दृष्टा थे। अपने समय में वे बहुत आगे देखते थे। मृत्यु तक वे अपने सिद्धांत पर दृढ़ रहे। उसी रास्ते को अपना कर हम अपने देश का रुतबा विश्व के राष्ट्रों में ऊँचा कर सकते हैं।

लेखक, निर्माता, निर्देशक बृजेन्द्र रेही ने गांधी जी के प्रेरणादायी प्रसंगों पर दूरदर्शन के लिए ‘महात्मा’ के नाम से एक धारावाहिक बनाया था। उसकी DVD दूरदर्शन के सेल काउंटर पर उपलब्ध है।

सरदार वल्लभभाई पटेल की यह बात आज सौ फीसदी सच साबित हो रही है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री और जननेता नरेन्द्र मोदी ने सामाजिक बदलाव के लिए भारत के हर नागरिक को साथ लेकर काम करने का बीड़ा उठाया है। यही कारण है कि आज़ादी के बाद पहली बार देशवासियों और युवा पीढ़ी को यह महसूस हो रहा है कि आज दुनिया में भारत का रुतबा और हौंसला दोनों ही बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।

कोई भी देश बिना सामाजिक परिवर्तन के आगे नहीं बढ़ सकता। सामाजिक परिवर्तन के लिए ज़रूरी है कि हम उन बुराईयों को दूर करें जो हमारे आसपास के माहौल को प्रदूषित कर रही हैं।

गांधीजी ने खुद कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।

यदि गांधीजी के जीवन का अध्ययन करें और रोजमर्रा के क्रियाकलापों पर नज़र डालें तो पता चलेगा कि वे जीवन में वे छोटी-छोटी बातों पर कितना ध्यान देते थे।

इन बातों में सफाई और स्वच्छता भी उनके दैनिक कार्यों का हिस्सा थी। वे अपने आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखने पर ज़ोर देते थे और खुद सफाई के काम में हाथ बंटाते थे।

19 नवम्बर 1944 को महात्मा जी ने सेवाग्राम में हिन्दुस्तानी तालीमी संघ द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने वाले सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा था- ‘‘शिक्षा में मन और शरीर की सफाई ही शिक्षा पहला कदम है। आप के आसपास की जगह की सफाई जिस प्रकार झाड़ू और बाल्टी की मदद से होती है, उसी प्रकार मन की शुद्धि प्रार्थना से होती है। इसलिए हम अपने काम की शुरूआत प्रार्थना से करते हैं।’’

उन्होंने अन्य बातों की चर्चा करते हुए आगे कहा- ‘‘यदि शरीर को ईश्वर की सेवा का साधन मानते हुए हम शरीर को पोषण देने के लिए ही भोजन करें, तो इससे हमारे मन और शरीर ही स्वच्छ और स्वस्थ नहीं होंगे, बल्कि हमारी आंतरिक स्वच्छता हमारे चारों ओर के वातावरण में भी झलकेगी। हमें अपने शौचालयों को रसोईघर जैसा स्वच्छ रखना चाहिए।

अगर हम अपने आसपास, अपने घर, सार्वजनिक स्थानों और आवागमन के साधनों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि हमने वहाँ बने शौचालयों को साफ रखने की कोई कोशिश नहीं की। भारतीय समाज में शौचालय का स्थान सबसे उपेक्षित स्थान है जिसकी साफ-सफाई पर लगभग ध्यान ही नहीं दिया जाता। जबकि सच यह है कि गंदे शौचालयों के इस्तेमाल से हम अपने साथ अनेक बीमारियों को जोड़ लेते हैं और फिर इलाज में धन और समय की बर्बादी करते हैं।

आगे बढ़ते हैं और गांधीजी के जीवन के कुछ प्रेरणादायी प्रसंगों को समझने की कोशिश और करते हैं।

अपने समय के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद् और लेखक श्री काकासाहब कालेलकर ने गांधीजी के साथ के संस्मरणों को ‘‘बापू की झांकियाँ’’ में लिपिबद्ध किया है।

वह उन दिनों की बात है जब गांधीजी 1915 में शांति निकेतन आए। गुरूदेव रवि बाबू उन दिनों कहीं बाहर गए हुए थे।

गांधीजी और काका कालेलकर के बीच रसोईघर के बारे में चर्चा हुई। गांधीजी को महसूस हुआ कि रसोईयों की संख्या जरूरत से ज्यादा है। उन्होंने प्रस्ताव किया कि इनकी संख्या कम की जानी चाहिए। शांति निकेतन के व्यवस्थापक विचारने लगे कि यकायक रसोई कम कैसे की जा सकती हैं ? वे सकते में आ गए। गुरूदेव के दामाद नगीनदास गांगुली भी बापू के प्रभाव में आ गए।

मिस्टर एंड्रयूज भी उन्हीं दिनों शांति निकेदन का कामकाज देख रहे थे। उन्होंने गांधीजी से कहा- ‘‘आज तो तुमको अपनी प्रभावशाली भाषण शैली काम में लानी होगी और विद्यार्थियों को जोश से समझाना होगा।’’

दरअसल गांधीजी चाहते थे कि विद्यार्थी और टीचर सभी मिलकर खाना बनाने से लेकर बर्तनों की सफाई का काम करें। इससे उनमें आत्मविश्वास और जिम्मेदारी तथा एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता बढ़ेगी।

फिर हुआ भी वही। गांधीजी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध नहीं हुए थे और मेहमान के तौर पर ही साउथ अफ्रीका से आए थे। लोगों ने उनका नाम सुन रखा था। विद्यार्थी इकट्ठे हुए। व्यवस्थापक और अन्य लोग पशोपेश में थे। गांधीजी ने मामूली और ठंडी आवाज़ में विद्यार्थियों से व्यवहारिक बात की। न उनकी बातों भावुकता थी और न ही उनकी बातों में जोश पर गांधीजी के दलीलें और व्यवहारिक बातें काम में आ गईं।

दूसरे ही दिन से रसोई का काम विद्यार्थियों और अन्य लोगों ने संभाल लिया। बड़े विद्यार्थियों की एक टुकड़ी बर्तन मांजनें और साफ-सफाई के लिए तैयार हो गई और महात्मा बनने से पहले ही गांधी जी का सफाई अभियान शुरू हो गया था।

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