Gandhiji ke sapono ka bharat about 500 world in hindi
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सच्चे महापुरुषों को स्वार्थ के कीटाणु कभी रुग्ण नहीं बनाते। उनका चित्त दिन-रात दूसरों के कल्याण में रहा करता है, जैसा कि महाकवि बाणभट्ट ने लिखा है- लोकविधेयानि हि भवन्ति चेतांसि महताम्। विघ्नों के विन्ध्याचल भी उनके मार्ग में अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकते, वे आपत्तियों के अर्णव को भी अगत्स्य की तरह चुल्लुओं में पी जाते हैं।
महात्मा गाँधी मानवमात्र के हित-चिन्तक थे। उनके आदर्शपुरुष थे- राम और उनका आदर्श राज्य था- रामराज्य। उन्होंने स्वच्छ और समर्थ भारत का सपना देखा था। भारत देश नहीं समस्त देशों का प्राण है। यह मूल रूप में कर्मभूमि है, भोगभूमि नहीं। भारत का ध्येय दूसरे देशों के ध्येय से कुछ अलग है। भारत में ऐसी योग्यता है कि वह अध्यात्म के क्षेत्र में दुनिया का प्रथप्रदर्शक हो सकता है। स्वच्छता से हमारा तात्पर्य बाह्य एवं अन्तः स्वच्छता से है। जब तक हमारा अन्तः करण स्वच्छ नहीं होगा तब तक बाह्य स्वच्छता एक दिखावा भर हो सकता है।
स्वस्थ एवं समर्थ दोनों अन्योन्याश्रित है। जब तक हम अभ्यन्तर और बाह्य रूप से स्वच्छ नहीं होंगे तब तक समर्थ होना सम्भव नहीं है। स्वच्छता चाहिए- पहले आन्तरिक उपरान्त बाह्य। जब हम आन्तरिक रूप से स्वच्छ होते हैं अर्थात ‘अध्यात्मिक’ रूप से तब हमें बाह्य रूप से अर्थात भौतिक रूप से भी सर्वत्र स्वच्छ ही स्वच्छ दिखाई पड़ने लगता है- जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। गाँधी जी ने आजीवन इसी को साधने में अपना पूरा समय लगाया था।
उनके जीवन में शुरू से अन्त तक समस्याओं का अम्बार था, पर इस गुण के कारण कभी विचलित नहीं हुए। वे निरन्तर कार्य करते रहते थे ‘तन काम में और मन राम में’ रमा रहना चाहिए। कुछ भी करने से पहले प्रार्थना और ध्यान पर विशेष जोर देते थे जो भारतवर्ष का जन्मजात स्वभाव है। अपने ही नहीं वरन पूरी सभा को ‘रघुपतिराघव राजा राम’ का भजन कराते थे- जो रामराज्य अवतरित करने का महामन्त्र माना जाता है। जब हम इस भाव से बाह्य जगत में योगदान करेंगे तभी हम पूर्ण रूप से स्वच्छ एवं समर्थ बना पाएँगे। ‘समर्थ’ वही व्यक्ति होता है जो स्वच्छ और शान्त हो। पूर्ण शान्त भाव से कोई भी कार्य हमें समर्थता का वरदान प्राप्त कराता है। यह पाठ गाँधी जी ने हमें अपना पूरा जीवन आहूत कर राष्ट्र के सामने एक दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत किया। जिसे अपना कर एवं आदर्श मानकर चला जाए तो वह दिन दूर नहीं कि भारत पूरे विश्व में एक सामर्थ्यवान राष्ट्र के रूप में उभरेगा जो इस धरा के मानवमात्र जो जागृत करेगा। गाँधी जी ने कहा था- “भारत गाँवों का देश है किन्तु श्रम एवं बुद्धि के बीच अलगाव के कारण हम अपने गाँवों के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि देश में जगह-जगह सुहावने और मनभावने छोटे-छोटे गाँवों के बदले हमें घूरे जैसे गन्दे गाँव देखने को मिलते हैं। हमने राष्ट्रीय या सामाजिक सफाई को न तो जरूरी गुण माना और न ही उसका विकास किया। हम ढंग से नहा भर लेते हैं, मगर जिस नदी, तालाब या कुएँ के किनारे हम श्राद्ध या वैसी ही दूसरी कोई धार्मिक क्रिया करते हैं और जिन जलाशयों में पवित्र होने के विचार से हम नहाते हैं उनका पानी गन्दा करने में हमें कोई हिचक नहीं होती। फलतः हमारे गाँवों की और हमारी पवित्र नदियों के पवित्र तटों की लज्जाजनक दुर्दशा और गन्दगी से पैदा होने वाली बीमारियाँ हमें भोगनी पड़ती है।”