Ganga ki savachta par 150 words me nibandh.
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Namami gange Jai Jai Jai............
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ganga river pollution, how to save ganga, how to clean ganga, ganga safai abhiyan in hindi, essay on ganga river in english: सभी जानते है कि मनुष्यमात्र, जीवों एवं वृक्ष वनस्पतियों के लिए जल का महत्व कितना अधिक हैं. हमारी काया भी जल से बनी हैं और जल की पूर्ति निरंतर होती रहे, हम बराबर इसका ध्यान रखते हैं. भारत बड़ा गौरवशाली देश हैं कि यहाँ पूरब से पश्चिम एवं पश्चिम से पूर्व, उत्तर से दक्षिण निरंतर सरिताएं प्रवाहित होती रहती हैं.
पर इन सब में गंगा को भारतवर्ष की जीवनधारा कहा जाता हैं. इसके प्रवाह के पीछे संस्कृति हैं, एक विशिष्ट सभ्यता हैं एवं आध्यात्म दर्शन हैं. इसे पवित्रतम नदी माना जाता हैं. गोमुख से निकलकर हिमालय से उतरकर यह 2525 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर गंगासागर में जा मिलती हैं. आर्यावृत या आधा भारत इसके द्वारा सींचा जाता हैं. पूरी मात्रा में अनगिनत नदियाँ, नाले जल स्रोत इसमें मिल जाते हैं.
अपने तीव्र अविरल प्रवाह के कारण सभी को अपने मार्ग में समाती चली जाती हैं. प्रवाहमान अविरल गंगा में कभी अनगिनत गुण थे, पर मानवी सभ्यता के तथाकथित विकास ने मोक्षदायिनी इस पावन नदी को आज न पीने, न नहाने लायक छोड़ा हैं. जिस नदी के सम्मान में अनगिनत गरिमामय गान गाये जाते हैं, उसमें कस्बों, नगरों का मैला, उद्योगों का कचरा, नालों का पानी, शव इत्यादि हम नित्य बहा रहे हैं.
गंगा सफाई अभियान निबंध (Ganga Safai Abhiyan Essay)
गंगा सफाई परियोजना, गंगा सफाई अभियान 2018, गंगा सफाई अभियान 2019, गंगा सफाई अभियान इन हिंदी, गंगा सफाई अभियान पर निबंध, गंगा सफाई अभियान 2017, गंगा की सफाई, गंगा सफाई योजना कब शुरू हुई
ganga swachata abhiyan in hindi essay:- आज गंगा के साथ इतना अन्याय होने के उपरांत भी वह अनवरत बह रही हैं. हिमालय पर ग्लेशियर इसे जलधारा से अभिपुरित करते हैं. तो ऋषिकेश हरिद्वार में नीचे आने पर वृक्ष वनस्पतियों की हरी चादर इसे भरा पूरा बनाती हैं. पर हो क्या रहा हैं ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं. वृक्ष वनस्पतियों के कटने के कारण भूक्षरण हो रहा हैं.
हर वर्ष भयानक बाढ़ आ रही हैं , धरती पर उतरने के बाद इससे प्रवाहमय बनाने का कार्य इसके किनारे लगे वृक्ष क्षुप आदि ही करते हैं. ये ही जमीनी स्तर पर गंगा या किसी भी नदी के ग्लेशियर हैं पर हो क्या रहा हैं. अंधाधुंध शहरीकरण की होड़ के कारण गंगा का किनारा यहाँ ही नही गंगोत्री से नीचे टिहरी के जलाशय व नीचे देवप्रयाग तक तथा बद्रीनाथ से नेचे देवप्रयाग तक और इसके बाद ऋषिकेश तक प्रभावित हुआ हैं.
गंगा नदी के किनारे बड़े बड़े होटल बने हैं, धर्मशालाएं है aतथा रिसोर्ट बन गये हैं. पनबिजली के छोटे प्रोजेक्ट चलाए जाने थे. अब बड़े बांध बना दिए गये हैं या बनाए जा रहे हैं. 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद भी होश नही आया. हम यह विचार नही कर पा रहे हैं कि हम कितनी तेजी से गंगा का आस्तित्व खत्म कर रहे हैं.
गंगा सफाई अभियान” -चुनौतियां और समस्याएं
इन पंक्तियों के लेखक, पत्रिका के सम्पादक ने स्वय भागीरथी व अलकनंदा जो गंगा बनाती हैं, का किनारा चप्पा चप्पा छाना हैं. देखा है कि हम कितना नुकसान अपने पर्यावरण के साथ कर रहे हैं. यही नही जिसे माँ कहा हैं एवं लाखो करोड़ो भारतवासी जिसके नाम मात्र से पवित्र होने का भाव करते हैं उसका भी हम चीरहरण कर रहे हैं, उसका अस्तित्व हम समाप्त कर रहे हैं.
पर इन सब में गंगा को भारतवर्ष की जीवनधारा कहा जाता हैं. इसके प्रवाह के पीछे संस्कृति हैं, एक विशिष्ट सभ्यता हैं एवं आध्यात्म दर्शन हैं. इसे पवित्रतम नदी माना जाता हैं. गोमुख से निकलकर हिमालय से उतरकर यह 2525 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर गंगासागर में जा मिलती हैं. आर्यावृत या आधा भारत इसके द्वारा सींचा जाता हैं. पूरी मात्रा में अनगिनत नदियाँ, नाले जल स्रोत इसमें मिल जाते हैं.
अपने तीव्र अविरल प्रवाह के कारण सभी को अपने मार्ग में समाती चली जाती हैं. प्रवाहमान अविरल गंगा में कभी अनगिनत गुण थे, पर मानवी सभ्यता के तथाकथित विकास ने मोक्षदायिनी इस पावन नदी को आज न पीने, न नहाने लायक छोड़ा हैं. जिस नदी के सम्मान में अनगिनत गरिमामय गान गाये जाते हैं, उसमें कस्बों, नगरों का मैला, उद्योगों का कचरा, नालों का पानी, शव इत्यादि हम नित्य बहा रहे हैं.
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हर वर्ष भयानक बाढ़ आ रही हैं , धरती पर उतरने के बाद इससे प्रवाहमय बनाने का कार्य इसके किनारे लगे वृक्ष क्षुप आदि ही करते हैं. ये ही जमीनी स्तर पर गंगा या किसी भी नदी के ग्लेशियर हैं पर हो क्या रहा हैं. अंधाधुंध शहरीकरण की होड़ के कारण गंगा का किनारा यहाँ ही नही गंगोत्री से नीचे टिहरी के जलाशय व नीचे देवप्रयाग तक तथा बद्रीनाथ से नेचे देवप्रयाग तक और इसके बाद ऋषिकेश तक प्रभावित हुआ हैं.
गंगा नदी के किनारे बड़े बड़े होटल बने हैं, धर्मशालाएं है aतथा रिसोर्ट बन गये हैं. पनबिजली के छोटे प्रोजेक्ट चलाए जाने थे. अब बड़े बांध बना दिए गये हैं या बनाए जा रहे हैं. 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद भी होश नही आया. हम यह विचार नही कर पा रहे हैं कि हम कितनी तेजी से गंगा का आस्तित्व खत्म कर रहे हैं.
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