Ganga Mali n hone paye chapter please solve
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परिणामस्वरूप पवित्र पावनी गंगा में शुद्ध जल की अपेक्षा अपवित्र द्रव्यों की अधिकता हो जाती है।
गंगा की सफाई के लिये किये गए प्रयास एवं उनके परिणाम
विभिन्न परियोजनाओं एवं रेग्यूलेशंस (अधिनियमों) के द्वारा गंगा की सफाई की कोशिशें की गई, जिनमें प्रमुख हैं-क. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना: सरकार की तरफ से यह एक सबसे बड़ी कोशिश है जिस पर काफी बजट भी खर्च किया गया परन्तु परिणाम आशा के अनुसार नहीं निकल सका इसके कई कारण हैं- जिनमें से मुख्य है सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में आने वाले पानी का प्रदूषण का स्तर डिजाइन किये गए पानी के स्तर के अनुरूप नहीं है। जिसके कारण या तो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं कर रहे हैं या अगर कर भी रहे हैं तो अपनी कार्यक्षमता से काफी कम पर कार्य कर रहे हैं। इस कारण से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने से गंगा की सफाई में ज्यादा प्रगति नहीं हुई और व्यय किये गए धन का सदुपयोग नहीं हो पाया है।
ख. नदी में कचरा फेंकने पर रोक: कई मुख्य पुलों पर जहाँ से लोग अपनी धार्मिक भावनाओं के कारण विभिन्न प्रकार के फूल, पत्ती, पॉलिथीन, मूर्तियाँ, अस्थियाँ, राख इत्यादि नदी जल में प्रवाहित करते हैं, को रोकने के लिये लोहे की जाली आदि लगाने का कार्य किया गया है, लेकिन यह भी अपेक्षित रूप से प्रभावी नहीं हुआ है। इस प्रथा को रोकने के लिये लोगों में जागृति पैदा करने की आवश्यकता है। इसमें भी कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई है, किन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सके एवं गंगा में प्रदूषण कम नहीं हुआ।
ग. नदियों के किनारे पर कंस्ट्रक्शन मेटीरियल फेंकने पर रोक: इसके तहत भी कुछ जगहों पर कार्यवाही की गई किन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सका।
घ. तालाबों का विकास: बाढ़ के पानी को छोटे-छोटे तालाबों में भरने के लिये प्रयास भविष्य में एक बड़ा कदम साबित हो सकते हैं तालाब गाँव की पारिस्थितिकी सन्तुलन का आवश्यक अंग है अतः तालाबों को विकसित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार जल संरक्षण का दायित्व भी पूरा हो सकेगा। स्थानीय गन्दगी तालाब में एकत्र होकर स्थानीय रूप से सुरक्षित तरीके से विघटित हो जाएगी तथा नालों के माध्यम से नदी में अपेक्षाकृत कम गन्दगी जाएगी। तालाबों का प्रबन्धन स्थानीय रूप से आसानी से किया जा सकता है। तालाबों को व्यावसायिक उपयोग में भी लाया जा सकता है, बस एक अनुकरणीय पहल की जरूरत है। तालाब भूजल के गिरते स्तर को नियंत्रित करने में भी सहायक होंगे जिससे कि नदी जल पर निर्भरता कम होगी तथा नदी मेें जल का स्तर बनाए रखा जा सकेगा। इस ओर बहुत सा कार्य करना बाकी है।
ङ. जीरो डिस्चार्ज - अन्य उद्योगों से व पॉवर प्लांट से जीरो डिस्चार्ज में कुछ सफलता मिली है किन्तु ज्यादातर उद्योगों से कुछ-न-कुछ रसायन नालों के जरिए नदी में फेंका जाता रहा है जिसके कारण नदी में प्रदूषण बढ़ता है।
गंगा की सफाई के लिये नई कोशिशें
2014 में नई सरकार के आने के बाद गंगा सफाई की नई पहल हुई है। जिसमें नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने से लेकर घाटों की सफाई तथा जीर्णोंद्धार आदि प्रमुख हैं। लेकिन क्या ये कार्य गंगा सफाई के लिये पर्याप्त होंगे? इसमें सन्देह है। इसके अलावा नदियों में पर्यावरणीय प्रवाह को बढ़ाना भी है जिसके लिये प्रदेशों की सरकारें राजी नहीं हैं। जिसका कारण पानी की बढ़ती माँग एवं घटती आपूर्ति है।
गंगा की सफाई के लिये नई सोच
अपने स्कूली जीवन के दौरान हम लोग पढ़ा करते थे कि नदी की स्वतः साफ (Self Cleaning) करने की प्रवृत्ति होती है, यानि की यदि नदी में कुछ डाला जाये तो पानी कुछ दूरी के बाद स्वतः ही साफ हो जाता है, जैसा कि हम जानते हैं कि अब से लगभग 30 साल पहले तक गंगा जल कभी खराब नहीं होता था, हालांकि गंगा में कचरा व नाले आदि पहले भी मिलते थे, फिर आज क्या हुआ कि नदी एक बार गन्दी होती है तो समुद्र में मिलने तक साफ नहीं हो पाती? कहाँ गई गंगा की वह स्वतः साफ होने वाली प्रवृत्ति? हम लोगों को इस ओर ध्यान आकृष्ट करना होगा तभी हम गंगा को साफ कर पाएँगे।
पहले और आज में गंगा में पानी की मात्रा में इतना मात्रात्मक परिवर्तन तो नहीं हुआ कि जिसकी वजह से नदी की स्वतः साफ होने वाली प्रवृत्ति ही नष्ट हो जाये। बरसात के दिनों में तो कभी-कभी गंगा में पानी पहले से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं बह रहा है। इस विषम परिस्थिति का कारण आखिर क्या है? कहीं इसका कारण गंगा में डालने वाले या बहकर जाने वाले हानिकारक केमिकल्स (रसायन) तो नहीं जिसके कारण नदी में उपस्थित जीव-जन्तु एवं सूक्ष्म प्राणियों की मृृत्यु के कारण नदी की ‘स्वतः साफ’ होने वाली प्रवृत्ति का विनाश हो गया है, या इसका कारण वह पॉलिथीन या प्लास्टिक कचरा है जो इन जीव-जन्तुओं के अस्तित्व के लिये घातक है।
अगर ऐसा है तो समस्या का समाधान सीधा सा है, इन हानि