Gaon se majduron ka playan par aalekh
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एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर रहना और अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करना पलायन कहलाता है। लेकिन यह पलायन की प्रवृत्ति कई रूपों में देखी जा सकती है जैसे एक गांव से दूसरे गांव में, गांव से नगर, नगर से नगर और नगर से गांव। परन्तु भारत में “गांव से शहरों” की ओर पलायन की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा है
गांव से मजदूरों का शहरों की तरफ पलायन थामने के लिए उनको गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने वाली मनरेगा पर पंचायतों की निधि में हर साल करोड़ों की रकम पहुंचती है। लेकिन काम पाने की राह इनके सामने इतनी कठिन हैं कि मजदूर इस योजना से तौबा करने लगे हैं। वहीं इस योजना से कई शिकायतें भी हैं। लोगों का कहना है कि योजना ने एक ओर गांवों में खेती के लिए मजदूरी बढ़ा दी, तो दूसरी ओर उनकी कमी भी दिखा दिया। स्थिति यह है कि खेती के लिए जब मजदूरों की जरूरत होती है, तो खोजने पर भी नहीं मिलते हैं। मजदूरों की कमी झेल रहे किसान इस दुर्गति का कारण मनरेगा को ही बताते हैं l
तमाम योजनाओं के बाद भी पलायन पर विराम नहीं लग पा रहा है। पलायन करने वाले मजदूरों से लेकर इस पर रोक लगाने वाले जिम्मेदार अधिकारियों की भी अपनी मजबूरी है। केंद्र से फंड न मिलने से मनरेगा के कार्य जुलाई से बंद हैं। खेतिहर मजदूर और छोटे किसानों के पास काम नहीं है। ऐसे में पलायन फिर चालू हो गया है। गांवों में इन दिनों दूसरे प्रदेशों से दलाल आकर मजदूरों को ले जा रहे हैं।
कारण
अधिकारियों की विवशता, विभागों के बीच सामंजस्य की कमी तथा रोजगार साधनों की अनुपलब्धता की वजह से पलायन शुरू हो गया है
तथा रोज़गार कि समस्या भी तो है l पलायन करने की वज़ह से कुछ लोग दुर्घटना के शिकार तो कुछ लोग बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं l
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