Sociology, asked by shantamDey2953, 11 months ago

गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की ज़रूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति-निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाए। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएँ।

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Answered by nikitasingh79
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Answer with Explanation:

हम कार्यकर्ता के विचारों से सहमत नहीं है क्योंकि यदि नीति-निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना भी दिया जाए तो भी गरीबों को मौलिक अधिकारों की ज़रूरत रहेगी।

मौलिक आधार प्रत्येक व्यक्ति ग़रीब हो या अमीर के विकास के लिए आवश्यक है। मौलिक अधिकारों के माध्यम से नागरिकों को समानता तथा स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त होता है।

परंतु राजनीति के निर्देशक सिद्धांतों को बाध्यकारी बनाना संभव नहीं है्। नीति निर्देशक सिद्धांतों का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। यदि इन सिद्धांतों को बाध्यकारी बना दिया जाए तो उसके लिए व्यापक संसाधनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी जोकि अति कठिन कार्य है।  

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :  

निम्नलिखित स्थितियों को पढ़े l प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएँ कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे? (क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin-Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज़्यादा है - नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को, दंडित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था। (ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है। (ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं। (घ) आंध्र सोसायटी आंध्र प्रदेश के बाहर तेलुगु माध्यम के विद्यालय चलाती है।

https://brainly.in/question/11843579

 

 इनमें कौन-मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?

(क) न्यूनतम देय मज़दूरी नहीं देना।

(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाना।

(ग) 9 बजे रात के बाद लाऊड-स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।

(घ) भाषण तैयार करना।

https://brainly.in/question/11843592

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