गरीबी की चुनौती को पर्यावरणीय गिरावट की तुलना में अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। "मानने के कारणों के साथ दिए गए कथन के औचित्य पर चर्चा करें।
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गरीबी विश्व की स्थायी चुनौती रही है। 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत विश्व को गरीबी खत्म करनी है। लेकिन 17 अक्टूबर को गरीबी उन्मूलन दिवस की पूर्व संध्या पर जारी होने वाली विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि हम लक्ष्य से बहुत पीछे हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह कि गरीबी उन चुनिंदा देशों में स्थायी बन चुकी है, जहां विश्व के सर्वाधिक गरीब बसते हैं। यह दो तरीके से खतरे की घंटी है। एक, गरीबी कुछ देशों में सिमट रही है और दूसरा, गरीब उन क्षेत्रों में रहते हैं जो पारिस्थितिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। इससे मूलभूत सवाल यह उठता है कि क्या पर्यावरण कुछ हद तक गरीबी के लिए जिम्मेदार है?
विश्व बैंक की रिपोर्ट “पॉवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पेरिटी 2018 : पीसिंग टुगेदर द पॉवर्टी पजल” के अनुसार, गरीबी उन्मूलन दर की रफ्तार कम हुई है। 1990-2015 के दौरान एक प्रतिशत की सालाना दर से गरीबी कम हुई थी लेकिन 2013-15 के दौरान यह एक प्रतिशत से कम हो गई। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पिछले दो दशकों के दौरान दुनियाभर में गरीबों की संख्या में नाटकीय परिवर्तन हुआ है। यह परिवर्तन बताता है कि आर्थिक कल्याण के लिए नाजुक पारिस्थितिकी के क्या मायने हैं।
गरीबी उप सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में व्यापक हो रही है लेकिन गरीबों की संख्या का भौगोलिक विश्लेषण करने पर दूसरी ही तस्वीर उभरती है। इस समय उप सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में विश्व के 85 प्रतिशत गरीब आबादी बसती है। यह एक बड़ा बदलाव है। 1990 के दशक में विश्व के आधे गरीब पूर्वी एशिया और पैसिफिक में रहते थे। अब विश्व के सबसे गरीब 27 देशों में से 26 उप सहारा अफ्रीका में हैं। 2002 में इस क्षेत्र में गरीबों की संख्या एक चौथाई ही थी। लेकिन 2015 दुनियाभर के आधे से ज्यादा गरीब इन देशों में हो गए। वैश्विक स्तर पर केवल पांच देश- भारत, बांग्लादेश, नाइजीरिया, इथियोपिया और कांगा गणराज्य में दुनिया के आधे गरीब हैं। यह ऐसे समय में है जब विश्व के आधे देशों में तीन प्रतिशत से कम गरीबी का स्तर है। चौंकाने वाली बात यह है कि कांगो को छोड़कर बाकी देश ऊंची आर्थिक विकास दर के गवाह बन गये है.
धन्यवाद प्रश्नासाठी