English, asked by prajapatisangeeta383, 1 day ago

(गरीबों के कष्टों के प्रति समाज और राजनीतिक वर्ग की निष्ठुरता पर प्रकाश 2. Write an account of Bangladeshi squatters in Seemapuri as described by the author of "Lostsy (c (Lost Spring' की लेखिका के अनुसार सीमापुरी में बस गए बंगलादेशी लोगों का वर्णन कीजिए।) TH 3. Which two distinct worlds does the author notice in the bangle-making industry? (लेखिका चूड़ी बनाने वाले उद्योग में किन दो भिन्न संसारों को देखती है?) (a (c​

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Answered by kanchanbhadoriya81
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चुनावों के चौंकाने वाले परिणामों ने भारत में गरीबी की राजनीति को एक नई दिशा दी है। शायद यही वजह रही कि 2015-16 के आम बजट के बाद प्रत्येक विपक्षी दल ने भारतीय जनता पार्टी को गरीब और किसान विरोधी यानी अमीरों की पार्टी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बीते साल हुए लोकसभा चुनावों में सूपड़ा साफ होने के बाद अनिश्चितता से भरे राजनीतिक भविष्य को निहार रहे उत्तार प्रदेश और बिहार के क्षेत्रीय दलों को दिल्ली के चुनाव के बाद गरीबी की राजनीति में आशा की नई किरण दिखी है। भाजपा को अमीर समर्थक पार्टी बताकर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जदयू और राजद सभी इस नव वामपंथी विचारधारा के झंडाबरदार बन रहे हैं। लेकिन जिस आम आदमी पार्टी की सफलता को आधार मानकर ये दल इस रास्ते चलने की कोशिश कर रहे हैं वह रणनीति क्या उत्तार प्रदेश और बिहार में कारगर साबित होगी? भारत में समय के साथ गरीब और गरीबी के बदलते स्वरूप पर गौर करें तो लगता नहीं है कि इन दलों की यह रणनीति अधिक प्रभावी होगी। तथ्यों पर जाएं तो अर्थशास्त्री बीएस मिन्हास ने 1960 में गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 59 फीसद होने का अनुमान लगाया था। देश की जनसंख्या के इतने बड़े हिस्से के गरीब होने के कारण राजनेताओं को गरीबी की राजनीति करने का अवसर मिल गया। शायद इसी का नतीजा था कि उस वक्त की पूरी राजनीति गरीब समर्थक नीतियों के आसपास टिकी और इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर 1971 के आम चुनावों को जीता। देश में गरीबों की तेजी से घटती संख्या ने निश्चित रूप से विशुद्ध गरीबी की राजनीति की चुनावी मारक क्षमता को कम किया है।

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