Hindi, asked by ninaweanirudh2005, 6 months ago

गरीब कसाई पर कहानी हिंदी में​

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Answered by Arpita1678
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Explanation:

मेरे सामने एजाज़ बैठा था। शरीर मैं उसके एक पुराने फटे हुए बनियान, हरे रंग की लुंगी और माथे पर एक एम्ब्रॉडरी वाली सफ़ेद गोलाकार टोपी। पेशे से एजाज़ कसाई था।

"बेकसूर जानवरों को हरदिन मार के जो पाप किये है, शायद उसी लिए तुम इतना तकलीफ पाए। अब यह काम छोड़ के कुछ और काम करो और थोड़ा पुण्य कमाओ। हज पे जाओ। सोचो कल को तुमको भी खुदा को जवाब देना है। "एजाज़ के मेडिकल रिपोर्ट देखते हुए मैंने बोला। कुछ दिन पहले मैंने एजाज़ का पेट के ट्यूमर का ऑपरेशन मुफ्त मैं किया था। एजाज़ जैसे गरीब लोगों का मैंने मुफ्त इलाज करता हूँ। शायद इसलिए वह मेरा एहसानमन्द था।

थोड़ी देर एजाज़ मुझे देखता रहा और फिर मुस्करा कर बोला "अगर घोड़ा घास के साथ दोस्ती कर लेगा तो खायेगा क्या? इसलिए अगर मैं यह काम छोड़ दूँ तो रविवार को आप जैसे लोगों को अच्छा मटन देगा कौन? मुंह में अरुचि छा जाएगी आपके। और साब, यह काम तो मेरा कौलिक पेषा है। हलाल करने से पहले मैं खुदा से माफ़ी मांग लेता हूँ। खुदा को मालूम है की मैं बेकसूर हूँ। अगर कमाऊंगा नहीं तो मेरा परिवार खायेगा क्या? अगर बेज़ुबान जानवर को काटना पाप है तो उनके गोश्त खाने वाले क्या पापी नहीं है?"

उसकी बात सुनकर लगा मैंने जो तीर चलाया था वह तीर वापस मेरी तरफ ही लौट के आ गया। एक लम्बी सांस लेते हुए एजाज़ फिर बोला "मैं नॉनवेज नहीं खाता हूँ"

"क्यों? कब से! "आश्चर्यचकित हो कर मेरे मुहं से निकला। मन ही मन मैंने सोचा, 'हज़ार चूहे मार के बिल्ली हज़ को गयी!'

उदास हो गया एजाज़ का चेहरा। धीरे से बोला "बारह साल पहले, जब पहली बार ज़िन्दगी में मैंने पाप किया था और शायद वह आखिरी पाप भी। मेरा एकलौता गुनाह"।

"कैसा पाप? मुझे नहीं बताओगे?"

"आप तो मेरे लिए आल्हा के फ़रिश्ते हो, आप से क्या छुपाना?आप को मेरी कसम साब, किसी को बोलना नहीं।"

एक गिलास पानी पीकर एजाज़ ने अपनी कहानी शुरू की। "बारह साल पहले रामपुर कोर्ट के जज साहेब के बंगले की दिवार को लग कर मेरी झोपड़ी थी। मेरे बेटे ने बड़े प्यार से एक बकरा पाला था, उसका नाम आल्लारखा था। बड़ा प्यारा सा छोटा सा बकरा। जान से भी ज़्यादा प्यार करता था उस बकरे को मेरा बेटा। बांस के पेड़ जैसा बढ़ रहा था आल्लारखा। लेकिन शायद किसी की बुरी नज़र लग गई हमारी खुशी को। एक दिन सब गड़बड़ हो गया'।

"क्या गड़बड़?" उत्सुकता से बोला मैंने।

"पता नहीं कैसे हमारा बकरा दिवार कूद कर जजसाब के बगीचे के अंदर घुस गया और फूल, पतियाँ सब नस्ट भ्रस्ट कर दिया। उस दिन बंगले में अकेले रहने वाले जजसाब टूर पर बहार गए थे। बंगले के दरबान, नौकर और माली सब मिल कर दारु पी कर घर के अंदर मस्ती कर रहे थे। बेज़ुबान जानवर की क्या गलती? पता नहीं कैसे उस दिन गले में बंधी रस्सी से छूट गया? जजसाब अपने प्यारे पौधों, फूल और बगीचे के हाल देखते हुए बहुत गुस्सा हुए और पुलिस में रिपोर्ट कर दि।"

"फिर क्या हुआ'? छोटे बच्चों की तरह मैंने पूछा।

"फिर क्या? पुलिस ने हम दोनों को पकड़ कर हवालात में बंद कर दिया । '

"तुम और तुम्हारे बेटे को?"

" नहीं। मुझे और आल्लारखा को।"

"बकरी को?'' आश्चर्य हो कर मैंने पूछा।

"वह तो असली गुन्हेगार था। सारा दोष तो उसका ही था। थाने के पुलिसवाले मेरे दुकान से गोश्त लेते थे और उनसे जान-पहचान थी मेरी। कुछ ले दे कर काम रफादफा हो सकता था। लेकिन जजसाब का केस था। उपाय एक ही था, जजसाब से माफ़ी और नुकसान भरपाई।"

"जजसाब ने माफ़ कर दिया?"

"माफ़ कर तो दिया, पर बहुत बड़ी भरपाई मांग ली।"

"कितना रकम माँगा?"

"पैसा मांगते तो कहीं से जुगाड़ करके दे देता। पर उनके सर पर तो भूत सवार था। अपनी ज़िद पर कायम थे। वही बकरे का मांस खा कर अपना गुस्सा शांत करना था उनको। रो कर मैं और मेरे बेटे ने उनके पैर पड़े और गिडगिड़ाये, माफ़ी मांगी। दूसरे किसी बकरे का गोश्त देने की अर्ज़ी भी मैंने की। पर वो अपना फैसला सुना चुके थे। उनके बंगले के अंदर ही मुझे बकरे को हलाल करना था।"

"तुमने क्या किया? बकरे को मार दिया? तुम्हारा तो वही व्यापार है।" मैंने पूछा।

एजाज़ ने अपना मुहं रुमाल से पोछा और आसमान की और देख कर बोला" सभी चीज़ का व्यापार नहीं होता है साब। अपने घर के लोगों के साथ कोई व्यापार करता है भला? आल्लारखा बस एक जानवर नहीं था, वह तो हमारे घर के सदस्य जैसा था। हम सबका दुलारा। अपने बच्चे को कोई कैसे मार सकता है? जजसाब को समझाने की बहुत कोशिश कि, रोया,पैर पकड़े।"

"फिर? वह मान गए?"

" नहीं। उसी शाम को उनके बंगले के गेराज में बकरे को मारने का हुकुम सुना दिया। आल्लारखा को हलाल करने के समय और कोई गेराज में न हो, इसके लिए मिन्नत कि मैंने। नौकर, माली और दरवान शायद मेरे दुःख, दर्द और मेरे मन की हालत को महसूस कर रहे थे। ज़िन्दगी में पहली बार वह काम करने के लिए मेरा हाथ कांप उठा था। उस दिन रात को जजसाब के बहुत खुशी से चुस्की लेते हुए मटन खाते देख मुझे लगा कोई नरपिशाच मेरे सामने बैठा है। मुझे ज़बरदस्ती किया मांस खाने के लिए। हँस-हँस कर जजसाब ने बोले तेरे बकरे का गोश्त, मेरे बगीचे के फूल, पत्ता खाने की वजह से बहुत स्वादिष्ठ हो गया है। खुद ही चखो।"

एक पल के लिए एजाज़ कहीं खो गया। फिर उसने शुरु किया" सच बोलू साब, उसी पल मुझे इच्छा हो रही थी कि मेरे कसाई चाकू से जजसाब को हलाल कर दु। पर अपने आप को सम्भाला मैंने। वह राक्षस मेरे मुंह मैं ज़बरदस्ती मटन ठूस दिया। मैंने उलटी कर दिया।"

संवेदना जताते हुए मैंने बोला "हाँ, इतनी प्यार से तुमने वह बकरा पाला था, भला कैसे खा सकते थे? वह जज पापी और अमानुष था।"

मैं चौंक गया। आश्चर्यचकित होकर मैंने सोचा, मेरे सामने एक कसाई के बदले प्यार और जज़्बात से भरा एक हृदयवान अनोखा इंसान बैठा है।

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