गर्मी की दोपहर के लिए कवि ने क्या लिखा है
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कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ। जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।। कवि बताता है कि इतनी भयंकर गर्मी पड़ रही है कि सारा संसार ही तपोवन के समान हो गया है। (तपोवन में तप की गर्मी होती है।)
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