गरुड़ध्वज नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्रांकन चरित्र - चित्रण कीजिए
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गरुड़ध्वज नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्रांकन चरित्र - चित्रण कीजिए
प्रसिद्ध नाटककार पंडित लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित ऐतिहासिक नाटक गरुड़ध्वज की कथावस्तु शुंग वंश के शासक सेनापति विक्रम मित्र के शासनकाल और उनके महान व्यक्तित्व पर आधारित है गरुड़ध्वज में आदि युग या प्राचीन भारत के एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्वरूप को उजागर करने का प्रयास किया गया है इसमें धार्मिक संस्थाओं एवं स्वार्थों के कारण विकृत होने वाले देश की एकता एवं नैतिक पतन की ओर नाटककार ने ध्यान आकर्षित किया है या नाटक राष्ट्र की एकता और संस्कृत की गरिमा को बनाए रखने का संदेश देता ह
गरुड़ध्वज ' के पुरुष पात्रों में कालिदास एक प्रमुख पात्र हैं । यह बात सर्वविदित है कि कालिदास जैसा उच्च कोटि का नाटककार कोई दूसरा नहीं है , वह इस नाटक में एक पात्र के रूप में उपस्थित है , किन्त एक नवीन रूप में उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं ।
( 1 ) *महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य के महाकवि के रूप में विख्यात हैं । उनके कवित्व के समक्ष सभी नतमस्तक हैं । कुमार विषमशील विक्रमादित्य से । कहते हैं - “ इतना तो होता कि मेरे साथ रहने पर कवि राजा होते और मैं होता । कवि । ”
( ii ) *शिव के भक्त* वे महान् शिवभक्त हैं । महाकाल के मन्दिर के पुजारी के कथन से उनके शिवभक्त होने की पुष्टि की जाती है - “ कालिदास शैव हैं , . . . . . . संसार के सारे राज्य के लिए भी वे शिव की उपासना नहीं छोड़ सकते । ' '
( iii ) *कविता के प्रति गम्भीर* कालिदास ने अपनी कविता में उचित - अनुचित का पूर्ण ध्यान रखा है । उन्होंने कविता को कवि कर्म और धर्म माना । उन्होंने अपनी प्रेमिका के आग्रह पर भी कवि प्रसिद्धि के विपरीत कविता करने से मना कर दिया ।
( iv ) *वीर सेनापति*प्रस्तुत नाटक में महाकवि कालिदास को एक नवीन रूप से प्रस्तुत किया गया है । वे केवल कोमल मन कवि ही नहीं है वरन् महावीर भी हैं । वे जिस कुशलता से लेखनी चलाते हैं , उसी कुशलता से तलवार भी चलाते हैं । सेना का संचालन करने में वे अत्यन्त निपुण हैं
(v ) *व्यक्तिपूजा के विरोधी*वे व्यक्तिपूजा के विरोधी हैं । वे आदिकवि के इस कार्य से सहमत नहीं दिखते कि उन्होंने राम को देवता के रूप में प्रस्तुत किया । उन्हीं से प्रेरणा लेकर लोगों ने सामान्य जन को देवता के रूप में प्रतिष्ठित करने का घृणित कार्य आरम्भ किया ।
( vi ) *मानवतावादी*वे देवत्व में विश्वास नहीं करते , वह तो सच्चे मानव में । ही देवत्व के दर्शन करते हैं । वे मनुष्य को देवता से भी बढ़कर मानते हैं । वे कहते हैं - “ देवत्व का अहंकार सबके लिए शुभ भी नहीं है । मैं तो अब देवता को मनुष्य बना रहा हूँ । मनुष्य से बढ़कर देवता होता भी नहीं ।
( vii ) *श्रृंगारी*कवि कालिदास श्रृंगारी हैं । वे जब अपनी प्रेयसी वासन्ती को मयूर को गोद में उठाए , गले से लिपटाते हुए देखते हैं , तो अपनी आकांक्षा को वासन्ती से प्रकट करते हुए कहते हैं । मनुष्य क्या देवता भी कहीं हो तो इस सुख के लिए तरसने लगे , जो आप इस मयूर को दे रही हैं । ”
(viii ) *गृहस्थ जीवन के प्रति शंकालु* कालिदास गृहस्थ जीवन के सफल होने के प्रति सशंकित हैं । यही आशंका विषमशील पर प्रकट करते हैं - “ कुमारी कल्पना और कुमारी वासन्ती . . . . . . इन प्रेमिकाओं के साथ निभ सकेगी ? कभी एक मान करेगी और कभी दूसरी . . . . . . .
*_" इस प्रकार कहा जा सकता है कि कालिदास विलक्षण पुरुष हैं । वे वीर , सच्चे मित्र , सच्चे प्रेमी और महाकवि हैं । वे शासक भी हैं और शासित भी हैं । वे वीर न्यायप्रिय हैं , तो कठोर और कोमल भी हैं ।_*
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Aacharya Vikram Mitra Ka Charit chitran
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