Garibi par samvad do mitro ke bich
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rakesh– अलका बहन नमस्ते! कैसी हो?
aakesh– नमस्ते रचना, मैं ठीक हूँ पर महँगाई ने दुखी कर दिया है।
rakesh – ठीक कहती हो बहन, अब तो हर वस्तु के दाम आसमान छूने लगे हैं।
aakesh– मेरे घर में तो नौकरी की बँधी-बधाई तनख्वाह आती है। इससे सारा बजट खराब हो गया है।
rakesh– नौकरी क्या रोज़गार क्या, सभी परेशान हैं।
aakesh– हद हो गई है कोई भी दाल एक सौ बीस रुपये किलो से नीचे नहीं है।
rakesh– अब तो दाल-रोटी भी खाने को नहीं मिलने वाली।
aakesh – बहन कल अस्सी रुपये किलो तोरी और साठ रुपये किलो टमाटर खरीदकर लाई। आटा, चीनी, दाल, चावल मसाले दूध सभी में आग लगी है।
rakesh– फल ही कौन से सस्ते हैं। सौ रुपये प्रति किलो से कम कोई भी फल नहीं हैं। अब तो लगता है कि डाक टर जब लिखेगा तभी फल खाने को मिलेगा।
aakesh– सरकार भी कुछ नहीं करती महँगाई कम करने के लिए। वैसे जनता की भलाई के दावे करती है। जमाखोरों पर कार्यवाही भी नहीं करती है।
rakesh– नेतागण व्यापारियों से चुनाव में मोटा चंदा लेते हैं फिर सरकार बनाने पर कार्यवाही कैसे करे
aakesh– गरीबों को तो ऐसे ही पिसना होगा। इनके बारे में कोई नहीं सोचता।